गोरखपुर: सावन के पहले सोमवार को शिवालयों में लगा भक्तों का तांता, मंदिरों में दर्शन को पहुंचे श्रद्धालु

गोरखपुर: सावन के पहले सोमवार को शिवालयों में लगा भक्तों का तांता, मंदिरों में दर्शन को पहुंचे श्रद्धालु

गोरखपुर। आज सावन का पहला सोमवार है, जनपद में हर जगह शिवालयों में आज सुबह से ही भक्तों की भीड़ दिखाई दे रही है। हर जगह महिला- पुरुष- बच्चे मंदिरों में पंक्तिबद्ध होकर भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक कर रहे हैं। जनपद के महादेव झारखंडी मंदिर , मान सरोवर मंदिर, छोटे काजीपुर स्थित शिव मंदिर, धर्मशाला …

गोरखपुर। आज सावन का पहला सोमवार है, जनपद में हर जगह शिवालयों में आज सुबह से ही भक्तों की भीड़ दिखाई दे रही है। हर जगह महिला- पुरुष- बच्चे मंदिरों में पंक्तिबद्ध होकर भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक कर रहे हैं। जनपद के महादेव झारखंडी मंदिर , मान सरोवर मंदिर, छोटे काजीपुर स्थित शिव मंदिर, धर्मशाला शिव मंदिर, जटाशंकर मंदिर, शिव मंदिर सूरजकुंड, मुंजेश्वरनाथ मंदिर, सती माता मंदिर, शिव मंदिर भरवलिया, बेतियाहाता हनुमान मंदिर, शिवपुरी शिव मंदिर, बड़े काजीपुर स्थित शिव मंदिर, मेडिकल रोड स्थित शिव मंदिर के दरवाजे सुबह से ही श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। जहां पहले से कतार में खड़े श्रद्धालुओं ने भगवान शिव का बेलपत्र, धतूरा, गन्ना, भांग, अक्षत आदि के साथ दर्शन पूजन किया।

गोरखपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किमी पर स्थित और सुप्रसिद्ध झारखंडी महादेव मंदिर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भक्तों का तांता लगा हुआ है। सुबह 4:00 बजे से ही भक्तगण लाइन में लगकर अपने आराध्य को जल चढ़ा रहे हैं। श्रद्धालुओं में दूरदराज के भी लोग यहां पहुंचे हुए हैं। यहां तक कि गोरखपुर से बाहर बिहार के सुदूर इलाकों तक से लोग यहां आए हैं। इनका कहना है कि इस प्राचीन मंदिर में हमारी बहुत आस्था है। यहां आने के बाद हमें सुकून मिलता है और हमारी मनोकामना भी पूरी होती है। वही मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष का कहना है कि यह मंदिर लगभग 600 साल से भी अधिक पुराना है।

ये है महादेव झारखंडी की कहानी

किवदंती के मुताबिक और मंदिर के पुजारी शंभू गिरी के अनुसार आज के समय मे जहां मंदिर स्थापित है। सैकड़ों वर्ष पूर्व यहाँ घना जंगल हुआ करता था।जहां तमाम लकड़हारे रोज लकड़ियां काटकर अपना जीविकोपार्जन करते थे। एक दिन जब एक लकड़हारा पेड़ काट रहा था, जब उसकी कुल्हाड़ी पेड़ की जड़ से टकराई तो एक पत्थर से टकराने की आवाज के साथ ही वहां से खून की धारा बहने लगी। इसके बाद लकड़हारे ने देखा तो वहां शिवलिंग था। लकड़ हारा जितनी बार उस शिवलिंग को ऊपर लाने की कोशिश करता शिवलिंग उतना ही नीचे धंसता चला जाता।

लकड़हारे ने भयभीत होकर यह घटना कई और लोगों को भी बताई। इसी दौरान स्थानीय जमींदार को रात में भगवान भोलेनाथ का सपना आया कि जंगल में भोले प्रकट हुए हैं।स्वप्न की बात सच्ची मानते हुए जमींदार ने वहां पहुंचकर स्थानीय लोगों के साथ शिवलिंग को जमीन से ऊपर करने की कोशिश किया,किन्तु उसे सफलता नही मिली। तब जमींदार और स्थानीय लोगों द्वारा शिवलिंग पर दूध का अभिषेक किया जाने लगा और वहां पूजा-पाठ होने लगा, जो अब भी निरंतर जारी है।

पुजारी के मुताबिक शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी का निशान मौजूद है। तब से आज तक चाहे वह सावन मास का सोमवार हो या फिर भोलेनाथ का कोई भी त्योहार,यहाँ भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।भक्तों का मानना है कि यहाँ श्रद्धापूर्वक जो भी भोलेनाथ से मांगा जाता है,वह अवश्य पूर्ण होता है।

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