शिव, तुम्हारी गंगा कहां खो गई?

शिव, तुम्हारी गंगा कहां खो गई?

हरिद्वार में एक प्रश्न यह जन्मा कि यदि हिमालय शिव का वास है तो इसका नाम ‘हरिद्वार’ क्यों नहीं है। इसे हरिद्वार के रूप में क्यों लोकप्रिय बनाया गया। सिर्फ बद्रीनाथ ( विष्णु) की वजह से इसे हरिद्वार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आगे केदारनाथ, कैलास- मानसरोवर और ‘शिव की जटा’ पर उतरी गंगा है! …

हरिद्वार में एक प्रश्न यह जन्मा कि यदि हिमालय शिव का वास है तो इसका नाम ‘हरिद्वार’ क्यों नहीं है। इसे हरिद्वार के रूप में क्यों लोकप्रिय बनाया गया। सिर्फ बद्रीनाथ ( विष्णु) की वजह से इसे हरिद्वार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आगे केदारनाथ, कैलास- मानसरोवर और ‘शिव की जटा’ पर उतरी गंगा है!

हिंदू धर्म में कम से कम दो प्रवृत्तियां स्पष्ट हैं– आक्रामक आत्मसातीकरण और प्रेमभरा अन्तरमिश्रण! एक-एक समय कट्टर वैष्णवों ने दूसरे धार्मिक बिंबों का आक्रामक आत्मसातीकरण किया है। इसका एक उदाहरण ‘हरद्वार’ को ‘हरिद्वार’ बनाना है। इसी तरह प्रेमसिक्त अन्तरमिश्रण के उदाहरण हैं–हरि-हर और अर्धनारीश्वर के बिंब, शैव- वैष्णव विवाद का राम और शिव द्वारा एक-दूसरे की प्रशंसा के रूप में समाधान! किसी भी धर्म में आक्रामक आत्मसातीकरण की प्रवृत्ति उस धर्म को मूल्यों की खोज की जगह कर्मकांड- प्रधान तो बनाती ही है, उसे हिंसात्मक भी बना देती है और आज के दौर में व्यापार का उपजाऊ क्षेत्र भी।

धर्म के दो पक्ष हैं– मूल्य चेतना और कर्मकांड। धर्म का महज कर्मकांड में सीमित होना धर्म का अंत है। जब भी धर्म- धर्म का बहुत शोर हो तो समझ लेना चाहिए, वहां सब है सिवाय धर्म के। मेरे लिए चिंता का विषय आक्रामक आत्मसातीकरण का नया रूप है जो हिंदू धर्म का एकरूपतावादी स्वरूप है। यह ‘उत्तर भारतीय हिंदुत्व’ के आक्रमण का भ्रम पैदा कर रहा है और देश को संकट में डाल रहा है।

स्पष्ट है कि उत्तर भारत में सांस्कृतिक विविधता के साथ हिंदुओं की आस्थाओं और रीतियों में भी विविधता है। वस्तुतः ‘उत्तर भारतीय हिंदुत्व’ जैसी कोई चीज नहीं है। अपनी विविधताओं और अन्तरमिश्रण के साथ हिंदू धर्म जरूर एक बड़ी वास्तविकता है। मेरा इससे सरोकार गर्व और शर्म से भिन्न है।

हमारे सामने एक जिम्मेदारी यह है कि उत्तर भारत से बाहर के लोगों को इस भय से कैसे मुक्त करें और बताएं कि आर्यावर्त के प्रतिरूप -‘उत्तर भारतीय हिंदुत्व’ जैसी कोई चीज कभी नहीं रही है। इससे जुड़े प्रचार हिंदुओं को ही संकुचित कर रहे हैं!
मुझे हिंदू देवताओं में शिव सबसे ज्यादा प्रिय हैं। शिव एक गैर- वैदिक उत्पत्ति के देवता हैं, पशुपति से विकसित, वैदिक रुद्र और दक्षिण भारतीय नटराज आदि के बिंबों से अन्तरमिश्रित। दक्षिण में शिव भक्ति का प्रचार ज्यादा रहा है। कश्मीर में शैव दर्शन बना है, भले हिंदी क्षेत्र में कई बड़े शिव मंदिर हों।

शिव से संबंधित जो कथाएं बाद में बनीं, उनसे स्प्ष्ट बोध हो सकता है कि दक्षिण- उत्तर संवाद कितना अर्थपूर्ण है। शिव का संबंध गंगा और कैलास से होना दक्षिण- उत्तर के बीच धार्मिक- सांस्कृतिक अन्तरमिश्रण का एक बड़ा उदाहरण है!
मुझे शिव इसलिए भी प्रिय हैं कि उनकी छवि भले संहारक की बनाई गई है, वे जरा भी मार-काट मचाने वाले देवता नहीं हैं। बल्कि काली की हिंसात्मकता को रोकने के लिए वे उनकी राह में सत्याग्रह करते दिखते हैं।

वे स्वर्णाभूषण और राजमुकुट वाले देवता नहीं हैं, लोक देवता हैं और कई स्थानीय लोक परंपराओं के साथ उनका व्यापक अन्तरमिश्रण होता है। वे सर्वसुलभ देवता हैं, और सबसे कम हथियाए जा सके हैं! एक और खूबी है, वे भोले हैं, सहज हैं, घर- परिवार वाले हैं। कोई अन्य देवता इस तरह घर- परिवार वाला नहीं है।

समुद्र मंथन में कोई ऐरावत ले गया, कोई लक्ष्मी ले गया, कोई अमृत ले गया, शिव के हिस्से में जहर आया। उन्हें नीलकंठ कह कर महिमामंडित कर दिया गया, पर क्या किसी ने उनके विषपान के दर्द को पहचाना? यह मुक्त बाजार एक तरह का समुद्र मंथन ही तो है। कोई ऐरावत ले जाएगा, कोई लक्ष्मी ले जाएगा, करोड़ों लोगों के हिस्से में जीवन का हलाहल आएगा!

हरिद्वार में एक जगह साधारण सा बना एक स्कूल देखा जिसका नाम ‘संस्कृति स्कूल’ है,पर यहां शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है! धर्म की तरह संस्कृति की धारणा किस तरह सिकुड़ी है, इसका यह एक उदाहरण है। देहरादून में दून स्कूल है, जो इस देश के ‘रूलर्स’, शासक तैयार करता है, बड़े लोगों के बच्चे यहां पढ़ते हैं। दूसरी तरफ, हिंदी माध्यम के हजारों विद्यालय हैं जो देश को चपरासी, क्लर्क, नर्स और झंडा ढोने वाला देते हैं! पूरे देश में राम का हल्ला है, पर यह देश तो हलाहल पी रहा शिव बना हुआ है!

एक बार फिर गंगा की तरफ लौटें! गंगा को एक महान नदी कहने का अर्थ यह कभी नहीं होना चाहिए कि देश की नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी आदि नदियां गौण हैं। सिर्फ गंगा के गुण गाना भारतवासी को सीमित करेगा, यह आक्रामक ‘उत्तर भारतीय हिंदुत्व’ का चिह्न होगा। फिर गंगा के सैकड़ों स्थानीय नाम हैं और बांग्लादेश में तो इस नदी का नाम पद्मा है। यह नहीं है कि भारत में वह हिंदू नदी है और बांग्लादेश में वह मुसलमान हो गई! नदियां, पहाड़, खेत, जंगल कभी हिंदू- मुसलमान नहीं होते।

मैं गंगा के किनारे कुछ नहीं, गंगा को ही ढूंढ रहा हूँ। मुझे लगा कि मैं जैसे अपने ही घर में खो गया हूँ। मेरे सांस्कृतिक असबाब मेरे घर से बाहर फेंक दिए गए हैं और हर तरफ अपरिचित चीजें भर गई हैं। इतना ताम-झाम, इतना ग्लैमर, इतने जयकारे, इतने नाट्य, इतने शक्तिशाली प्रचार हैं कि मेरी आवाज कौन सुनेगा! फिर भी हमें तूती की तरह बोलना तो होगा। तसल्ली यह हुई कि गंगा निर्विकार बह रही है। वह अपने संसार को पहले की ही तरह बचा रही है। इसी तरह कहीं नर्मदा बह रही होगी, कहीं गोदावरी बह रही होगी, कहीं कोसी बह रही होगी और सैकड़ों नदियां बह रही होंगी। वे बह- बह कर यही कहती हैं, धर्म को तालाब न बनाओ और न उसे बाढ़ बनाओ !गंगा की बाढ़ का पानी पवित्र नहीं होता!!
-शंभुनाथ

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