चिंता का विषय

चिंता का विषय

दुनिया में अलग-अलग देश पर्यावरण को बचाने की मुहिम चला रहे है। परंतु यह मुहिम वैश्विक स्तर पर सार्थक प्रभाव डालती नजर नहीं आ रही हैं। पर्यावरण के मामले में 180 देशों की बात करें तो भारत इसमें सबसे निचले पायदान पर है। पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 (ईपीआई) की 11 श्रेणियों के 40 मानकों में भारत …

दुनिया में अलग-अलग देश पर्यावरण को बचाने की मुहिम चला रहे है। परंतु यह मुहिम वैश्विक स्तर पर सार्थक प्रभाव डालती नजर नहीं आ रही हैं। पर्यावरण के मामले में 180 देशों की बात करें तो भारत इसमें सबसे निचले पायदान पर है। पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 (ईपीआई) की 11 श्रेणियों के 40 मानकों में भारत की रैकिंग 180 वीं रही है। भारत का सबसे कम स्कोर करना चिंता का विषय है। पर्यावरण संबंधी सभी रिपोर्टों में ईपीआई की रिपोर्ट को सबसे सटीक माना जाता है। ईपीआई रिपोर्ट हर दूसरे वर्ष आती है, जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम येल सेंटर फॉर इन्वायरमेंट लॉ पॉलिसी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इन्फॉर्मेंशन नेटवर्क मिलकर तैयार करते हैं।

रिपोर्ट में पर्यावरण जोखिम का खतरा, हवा की शुद्धता, वायु प्रदूषण, पानी और साफ-सफाई के मानक, पीने के पानी की क्वालिटी, जैव विविधता, जल स्रोतों का प्रबंधन, कचरे की डंपिग, ग्रीन एनर्जी में निवेश और जलवायु प्रबंधन जैसे मानकों को शामिल किया जाता है। सभी निर्धारकों में भारत का प्रदर्शन सबसे नीचे रहने की बड़ी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने मौजूदा पर्यावरण कानूनों को मजबूत करने और नए कानून की जगह उन्हें और शिथिल कर रखा है। तटीय नियमन जोन, वन्य जीव कानून, जंगलों में खनन से जुड़े कानून, सभी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। केंद्र सरकार का जोर पर्यावरण को सुधारने की जगह उद्योगों को सहूलियत देने पर है। पश्चिमी घाट पर औद्योगिक इकाईयों का दबाव है।

सरकार मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट्स को विकास ठहराती, जबकि यही परियोजना देश के जंगलों को नुकसान पहुंचा रही हैऔर शहरों की हरियाली को नष्ट कर रही हैं। पानी का प्रबंधन भी ठीक नहीं है, देश के तकरीबन सभी राज्यों में बोरवेल खोदने के लिए मनमाफिक तरीके से अनुमति दी जा रही है। नतीजतन पानी खारा हो रहा है और जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में केवल डेनमार्क और ब्रिटेन ही ग्रीनहाउस गैसों में 2050 तक कमी लाने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। भारत, चीन और रुस जैसे कई देश गलत रास्ता पकड़ चुके हैं। अमेरिका धनी देशों के अपने साथियों से पिछड़ रहा है।

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में अमेरिका 43 वें स्थान पर है। ईपीआई रैकिंग यह समझने में मदद करता है कि कौन-से देश पर्यावरणीय चुनौतियों का प्रबंधन बेहतर तरीके से कर रहे हैं। हम बेहतर प्रदर्शन करने वाले देशों की नीतियों के अनुसार अपनी घरेलू नीतियों में आवश्यक परिवर्तन ला सकते हैं। इसके लिए पारदर्शी विनियमन, लक्ष्यों तथा कार्यक्रमों पर खुली बहस, गैर-लाभकारी संगठनों की सहायता से नीति निर्माण प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।