चुनौतियों के बावजूद

वर्तमान में वैश्विक और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के सामने कई गंभीर संकट हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की लचीली अर्थव्यवस्था की प्रशंसा की है। आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बातचीत में …
वर्तमान में वैश्विक और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के सामने कई गंभीर संकट हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की लचीली अर्थव्यवस्था की प्रशंसा की है। आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बातचीत में हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों पर चर्चा करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव और इसके कारण ऊर्जा की बढ़ती कीमतों से जुड़ी चुनौतियों के बारे में चिंता जताई।
जॉर्जीवा ने कहा कोविड-19 महामारी से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकसित होने वाला देश बना हुआ है। वित्त मंत्री ने कहा कि भारत को अच्छे कृषि उत्पादन से मदद मिली है। भारत नई आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत कर रहा है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े कुछ मुद्दों को हल करने में मदद करेंगी।
गौरतलब है कि सात सप्ताह से चले आ रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ असाधारण प्रतिबंध लगाए हैं। इससे तेल, उर्वरक, धातु, खाद्यान्न एवं अन्य जिंसों की कीमतें बढ़ी हैं और आपूर्ति क्षेत्र की बाधा उत्पन्न हुई है। इसका परिणाम यह है कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि आईएमएफ द्वारा जनवरी में जताए गए अनुमान से काफी कम रहेगी, वैश्विक व्यापार विस्तार धीमा रहेगा।
ये बातें अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर कितनी भारी पड़ेंगी यह इस बात पर निर्भर करेगी कि यूरोप में युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंध कितने गहरे और लंबे खिंचते हैं, चीन में तथा दुनिया के अन्य हिस्सों में कोविड की क्या स्थिति रहती है और अमेरिका तथा अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीति में कड़ाई कितने समय चलती है। निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट भारत की आर्थिक वृद्धि में धीमापन लाएगी, इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी, बाह्य भुगतान संतुलन में कमी आएगी और राजकोषीय स्थिति पर दबाव और बढ़ेगा।
सवाल है कि ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? सरकार को व्यय और राजस्व के बजट में उल्लिखित लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अपने महत्वाकांक्षी सार्वजनिक निवेश कार्यक्रम, खासकर बुनियादी ढांचा कार्यक्रम के क्रियान्वयन की पूरी कोशिश करनी चाहिए। विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल रुपये के अवमूल्यन को थामने के लिए करना होगा ताकि अस्थिरता को रोका जा सके। रोजगार की स्थिति गंभीर है। नीतियों की मदद से कम कौशल वाले रोजगार बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए।