उत्तराखंड: सूक्ष्म शैवाल की मदद से कार्बन डाईऑक्साइड कम करने की तकनीक हुई विकसित, यहां मिली सफलता

हल्द्वानी, अमृत विचार। अगर सबकुछ ठीक रहा तो देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले लोगों को जल्द ही स्वच्छ ऑक्सीजन मिलने की अधिक संभावनाएं हो जाएंगी। दरअसल गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर के जीव वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। विश्वविद्यालय की टीम ने इंडो-डेनमार्क व उत्तराखंड काउंसिल …
हल्द्वानी, अमृत विचार। अगर सबकुछ ठीक रहा तो देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले लोगों को जल्द ही स्वच्छ ऑक्सीजन मिलने की अधिक संभावनाएं हो जाएंगी। दरअसल गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर के जीव वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। विश्वविद्यालय की टीम ने इंडो-डेनमार्क व उत्तराखंड काउंसिल आफ टेक्नोलाजी प्रोजेक्ट के तहत सूक्ष्म शैवाल से सीओटू कम करने की तकनीक विकसित की है। जिसका नाम पर्यावरण स्वच्छ सुंदर घर दिया है।
पंत विवि में जीव विज्ञान विभाग प्रो. डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि इंडो-डेनमार्क और यूकास्ट के वित्तीय सहयोग से सूक्ष्म शैवाल से कार्बन डाई ऑक्साइड कम करने की तकनीक विकसित की गई है। इसे विकसित करने में पांच साल लगे। अब इस तकनीक का पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया जाएगा। इसके बाद तकनीक का प्रयोग करने के लिए कंपनी के साथ टाइअप किया जाएगा। उन्होंने बताया कि शैवाल एक प्रकार का वनस्पति है जो पानी में लगने वाले शैवाल (काई) की तरह दिखता है। शैवाल कार्बन डाई ऑक्साइड को कम करने में सहायक होता है। करीब एक किलो शैवाल में डेढ़ किलो कार्बन डाई ऑक्साइड को खत्म करने की क्षमता है।
आवासीय या व्यावसायिक भवनों की दीवारों पर बोलतों में पानी व शैवाल डालकर वातावरण में फैली कार्बन डाई ऑक्साइड को कम किया जा सकता है। एक किलोग्राम शैवाल से डेढ़ किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड कम होगी। पानी में शैवाल विकसित होने से वातावरण भी हरा भरा बनता है। सोलर सिस्टम या बिजली से तकनीक को संचालित किया जा सकता है। इसमें लागत खर्च भी नहीं के बराबर है साथ ही स्वरोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं।
ऐसे काम करेगी तकनीक
प्रो. डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि बोतलों का कंपार्टमेंट बनाकर उनमें पानी और माइक्रो शैवाल डालते हैं। इन सभी बोतलों को पाइप से कनेक्ट कर दिया जाता है। जिसे विद्युत या सोलर सिस्टम मोटर से कनेक्ट किया जाता है। इससे वातावरण में फैले कार्बन डाई ऑक्साइड को पाइप के जरिए बोतलों में प्रेषित किया जाता है, जो बोतलों में बुलबुले बनते हैं और पानी में युक्त शैवाल की मदद से कार्बन डाई ऑक्साइड को अंदर ही खत्म कर दिया जाता है।