17 बार इस मंदिर ने झेला है आक्रमणकारियों का प्रहार, हर बार बढ़ती गई शिव मंदिर के प्रति भक्तों की श्रद्धा

17 बार इस मंदिर ने झेला है आक्रमणकारियों का प्रहार, हर बार बढ़ती गई शिव मंदिर के प्रति भक्तों की श्रद्धा

गुजरात में स्थित सोमनाथ मन्दिर अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। इस लिंग को स्वयंभू कहा जाता है। पुरातन कहानियों के अनुसार मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर को कई बार नष्ट किया और इस क्षेत्र के स्वदेशी शासकों …

गुजरात में स्थित सोमनाथ मन्दिर अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। इस लिंग को स्वयंभू कहा जाता है। पुरातन कहानियों के अनुसार मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर को कई बार नष्ट किया और इस क्षेत्र के स्वदेशी शासकों द्वारा इसे फिर से बनाया गया। इस मंदिर को तोड़ने और हिंदुओं के फिर उसे खड़ा करने का सिलसिला सदियों तक चला।

प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 में तीसरी बार इसका पुनर्निर्माण कराया। वहीं 1024 और 1026 में अफगानिस्तान के गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी ने भी सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। आखिरी बार मुगल बादशाह औरंगजेब के इशारे पर 1706 में इसे तोड़ा गया। हालांकि1783 में अहिल्याबाई ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर ध्वस्त मंदिर के पास अलग मंदिर का निर्माण कराया।

इतिहासकार बताते हैं कि सोमनाथ मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण कराया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्‍वतंत्रता के बाद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और 01 दिसंबर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

दिलचस्प बात यह है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा सोमनाथ से शुरू होती है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था लेकिन चंद्रदेव सबसे सुंदर रोहिणी को अधिक प्रेम करते। जब ये बात प्रजापति दक्ष को पता चली तो उसने क्रोधित होकर चंद्रमा को धीरे-धीरे खत्म होने का शाप दे दिया। अगर धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से देखें तो इसका जिक्र स्कंदपुराण, श्रीमद भागवत और शिवपुराण में मिलता है।

शाप से मुक्ति के लिए ब्रह्माजी ने चंद्र को प्रभास क्षेत्र यानी सोमनाथ में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कहा। चंद्रदेव ने सोमनाथ में शिवलिंग की स्थापना की और यहां तपस्‍या की। प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए और चंद्र को शाप से मुक्त करके अमरत्व प्रदान किया। शाप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रदेव ने भगवान शिव को माता पार्वती के साथ यहीं रहने की प्रार्थना की।

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