काठगोदाम से एलएचबी रैक से दौडेंगी गरीब रथ एक्सप्रेस, जानें कब से मिलेगी ये सुविधा

काठगोदाम से एलएचबी रैक से दौडेंगी गरीब रथ एक्सप्रेस, जानें कब से मिलेगी ये सुविधा

हल्द्वानी, अमृत विचार। पूर्वोत्तर रेलवे ट्रेन यात्रियों के सफर को आसान और सुविधाजनक बनाने के लिए पारंपरिक कोचों के स्थान पर एलएचबी (लिंक हॉफमेन बुश) रैक की सुविधा देने जा रहा है। रेल प्रशासन ने जम्मूतवी-काठगोदाम-जम्मूतवी गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12208/12207 ) और काठगोदाम-कानपुर सेंट्रल-काठगोदाम गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12210/12209) में पारंपरिक रेकों के स्थान …

हल्द्वानी, अमृत विचार। पूर्वोत्तर रेलवे ट्रेन यात्रियों के सफर को आसान और सुविधाजनक बनाने के लिए पारंपरिक कोचों के स्थान पर एलएचबी (लिंक हॉफमेन बुश) रैक की सुविधा देने जा रहा है। रेल प्रशासन ने जम्मूतवी-काठगोदाम-जम्मूतवी गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12208/12207 ) और काठगोदाम-कानपुर सेंट्रल-काठगोदाम गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12210/12209) में पारंपरिक रेकों के स्थान पर स्थायी रूप से एलएचबी रेक लगाने का निर्णय लिया है। इन गाड़ियों की संरचना में वातानुकूलित तृतीय श्रेणी इकोनामी श्रेणी के 12, जनरेटर सह लगेज यान के दो कोचों सहित कुल 14 कोच लगाए जायेंगे।

पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि जम्मूतवी-काठगोदाम गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12208 ) 30 जनवरी से जम्मूतवी से एलएचबी रेक से चलेगी। वहीं, काठगोदाम-जम्मूतवी गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12207 ) एक फरवरी से काठगोदाम से एलएचबी रेक से चलेगी। इसके साथ ही काठगोदाम-कानपुर सेंट्रल गरीब रथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12210) 31 जनवरी से काठगोदाम से एलएचबी रेक से चलेगी। कानपुर सेंट्रल-काठगोदाम गरीबरथ साप्ताहिक एक्सप्रेस (12209) एक फरवरी से कानपुर सेन्ट्रल से एलएचबी रेक से चलेगी।

जानें क्या है एलएचबी कोच
एलएचबी (लिंक हॉफमेन बुश) जर्मन तकनीक है। यह अधिकतर तेज गति वाली ट्रेनों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही ज्यादा स्पेस होने से यात्री आराम से सीट पर बैठ सकते हैं। दुर्घटना होने की संभावना कम रहती है। क्योंकि ये कोच पटरी से आसानी से नहीं उतरते है। एलएचबी कोच ट्रेन में हो तो ट्रेन की गति 160 से 180 किमी प्रति घंटे तक पहुंच सकती है। एलएचबी आपस में टकरा नही सकते हैं। एलएचबी कोच मजबूत होते हैं। अगर दुर्घटना हो जाती है तो ये कोच एक-दूसरे पर भी नहीं चढ़ते, जिससे यात्री सुरक्षित रहते हैं। नुकसान की आशंका कम होती है। इन कोचों का ओवरऑल मेंटेनेंस तीन साल में एक बार होता है। जबकि पारंपरिक कोच का मेंटेनेंस डेढ़ से लेकर दो साल में करवाना जरूरी होता है।