कूटनीतिक साझेदारी

तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के सामने अनेक चुनौतियां है। वर्ष 2020 और 2021 में वैश्विक स्तर पर कई परिवर्तनकारी घटनाएं देखने को मिली। इनमें से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति में सबसे अधिक परिवर्तन नजर आया। परिदृश्य यह है कि इस वर्ष में भी एक नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना दूर की …
तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के सामने अनेक चुनौतियां है। वर्ष 2020 और 2021 में वैश्विक स्तर पर कई परिवर्तनकारी घटनाएं देखने को मिली। इनमें से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भू-राजनीति में सबसे अधिक परिवर्तन नजर आया। परिदृश्य यह है कि इस वर्ष में भी एक नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना दूर की संभावना ही है। इसके बजाय वैश्विक मामलों में अनिश्चितता और अस्थिरता ही प्रमुख पहलू बने रहने की संभावना है। आगामी समय में भारतीय कूटनीति की कड़ी परीक्षा होगी।
ऐसे में आगामी 27 जनवरी को होने वाली भारत-मध्य एशियाई देशों की पहली शिखर बैठक की मेजबानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। बैठक में ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान के राष्ट्रपति भाग लेंगे। भारत के लिए मध्य-एशियाई देशों का महत्व लगातार बढ़ रहा है। कई मध्य एशियाई देशों ने क्षेत्र के सतत और स्थिर विकास में भारत की भूमिका की सराहना की है। इन देशों को भारत अपना सुदूर पड़ोसी मानता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इन देशों के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी चीन को बेचैन कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में सभी मध्य एशियाई देशों की ऐतिहासिक यात्रा की थी। इसके बाद इन देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर उच्च स्तर पर आदान-प्रदान शुरू हुआ है। इससे पहले गत वर्ष 19 दिसंबर को भारत-मध्य एशिया देशों के विदेश मंत्रियों ने भारत को अपना रणनीतिक साझेदार कहा और वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि वे भारत के विस्तारित पड़ोसी बने रहेंगे।
गौरतलब है कजाकिस्तान में वर्तमान अशांति एक ऐसे विश्व के लिए जोखिम उत्पन्न कर रही है, जो पहले ही इथियोपिया, लीबिया और पश्चिम एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों में तख्तापलट या आंतरिक संघर्ष की विभिन्न घटनाओं से ग्रसित है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में पुन: वापसी ने पहले से ही अशांत भूभाग में शक्ति संतुलन में एक भौतिक परिवर्तन उत्पन्न कर दिया है।
ध्यान देने वाली वाली बात है कि भारत व मध्य एशियाई देशों के विचारों में अफगानिस्तान को लेकर समानता है। हालांकि मध्य एशिया में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौती रूस के साथ पारंपरिक मित्रता के सर्वोत्कृष्ट प्रबंधन की है। उम्मीद है कि शिखर बैठक के जरिए भारत व मध्य एशिया के देशों के बीच व्यापक सहयोग के रिश्ते मजबूत करने की नींव पड़ेगी, जिसके लिए भारत लगातार प्रयासरत है।