बरेली: सियासी मंचों तक ही सीमित रहते हैं महिला उत्थान के दावे

बरेली, अमृत विचार। चुनावी मौसम में रूहेलखंड के सियासतदार मंचों के माध्यम से महिलाओं के लिए बड़े बड़े दावे करते हैं, लेकिन चुनाव गुजरने के बाद उन्हें कोई पार्टी बेहतर मुकाम नहीं दिला पाती है। इसकी टीस महिलाओं के अंदर है। यही नहीं महिलाएं सियासत के प्रति जागरूक भी हो रही हैं। यही वजह है …
बरेली, अमृत विचार। चुनावी मौसम में रूहेलखंड के सियासतदार मंचों के माध्यम से महिलाओं के लिए बड़े बड़े दावे करते हैं, लेकिन चुनाव गुजरने के बाद उन्हें कोई पार्टी बेहतर मुकाम नहीं दिला पाती है। इसकी टीस महिलाओं के अंदर है। यही नहीं महिलाएं सियासत के प्रति जागरूक भी हो रही हैं। यही वजह है कि महिलाओं का मतदान प्रतिशत भी बढ़ा है। इतना सब होते हुए भी सदन में उनकी भागीदारी नहीं बढ़ रही है और न ही प्रशासनिक पदों पर। देश की बेटियां बार्डर पर भी मोर्चा संभालने में गुरेज नहीं करती हैं।
इसके बाद भी उन्हें वह मुकाम अब तक नहीं मिल सका है, जिसकी वे हकदार हैं। हालात यह हैं कि महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, उद्यम आदि के बेहतर विकल्प भी रूहेलखंड में नहीं है। यही वजह है कि मंडल की हजारों बेटियां अपना भविष्य संवारने के लिए कानपुर, दिल्ली, प्रयागराज जैसे शहरों की ओर शिक्षा के लिए जाती हैं।
वहीं गरीब परिवारों की बेटियों की प्रतिभाग को मुफलिसी ले डूबती है। इस ओर भी सरकार और जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना होगा। महिलाओं को थोड़ी खुशी है कि जिंदगी में बदलाव तो हुआ है, घर गृहस्थी की सुविधाएं बढ़ी हैं लेकिन मुख्य मोर्चा पर उनकी समुचित भागीदारी क्यों नहीं रहती है।
क्यारा गांव की प्रेमलता सिंह का कहना है कि जिले में उन्हें कई सुविधाएं मिलीं हैं, लेकिन ये सुविधाएं बेटियों के लिए नाकाफी हैं। उनका कहना है कि बेटियां फैशन डिजाइनिंग आदि कोर्स करती हैं, लेकिन इसके लिए कोई बेहतर इंस्टीट्यूट नहीं है। शिक्षा के बेहतर विकल्प नहीं है। आज भी सिविल सर्विस के लिए बेटियों को बाहर जाना होता है। इसी तरह गांव शिवपुरी रधोली की उपासना सिंह का कहना है कि बेटियों की शिक्षा के लिए जिले में बेहतर विकल्प होना जरूरी है। कहा जब तक आधी आबादी को शिक्षा और सुरक्षा बेहतर तरीके से नहीं मिलेगी तब तक वे कुछ भी नहीं कर सकती हैं।
रोजगार की बेहतर सुविधाएं हों
बीसलपुर रोड निवासिनी ममता गंगवार ने बताया कि महिलाओं को रोजगार के लिए जिले में बेहतर विकल्प नहीं है। जब तक बेटियों को बेहतर विकल्प नहीं मिलेंगी तब तक वह कुछ भी नहीं कर सकती हैं। रोजगार के क्षेत्र में आज भी जिले की महिलाएं काफी पीछे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यही अंतर है। वहां बेटियों के लिए बेहतर शिक्षा है, कॉलेज हैं। यही वजह है कि यहां शिक्षा और रोजगार के साथ साथ राजनीति में भी महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है।
फरीदापुर इनायत खां की नीरज पटेल ने बताया कि सरकार में उन्हें सुरक्षा तो मिली है, लेकिन जो अन्य सुविधाएं होनी चाहिए वह नहीं मिलीं। जब तक महिलाओं को रोजगार और राजनीति में भागीदारी नहीं मिलेगी तब तक महिलाएं आगे नहीं बढ़ सकेंगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं को और अधिक बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए।
छलक उठा दर्द
फरीदापुर इनायत खां की मुन्नी देवी ने कहा कि चुनाव के वक्त नेता बड़े बड़े दावे करते हैं, लेकिन गांव में रहने वाली बेटियों और महिलाओं के लिए सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। उनका कहना है कि उन्हें अब तक न तो सौभाग्य योजना के तहत सिलेंडर मिला है और न ही उज्जवला योजना के तहत बिजली कनेक्शन सरकार की ओर से मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन भी उन्हें नहीं मिली है।
गांव की रामरती का कहना है कि सरकार ने योजनाएं तो कई चलाई हैं, लेकिन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण इसका लाभ गरीब परिवारों को नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए बेहतर उपाय किए जाने चाहिए। गांव की अन्य तमाम महिलाओं का दावा है कि सरकारी योजनाओं की जानकारी न होने के कारण वह कई चीजों से वंचित हैं। स्कूलों में शिक्षा का अभाव है। शिक्षक प्रतिदिन नहीं आते है। जिस कारण बेटियों की शिक्षा भी अधूरी रह जाती है।