बरेली: वादों पर लहलाती हैं सियासी फसलें

ओमेन्द्र सिंह, बरेली, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश में करीब 68 प्रतिशत लोग खेती किसानी से अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं। देश की अर्थ व्यवस्था में इनका बहुत बड़ा सहयोग रहता है। कोरोना संक्रमण के वक्त जब हजारों लोग बेरोजगार होकर गांवों और अपने घरों को वापसी करने लगे तो किसानों ने ही सबका सहयोग …
ओमेन्द्र सिंह, बरेली, अमृत विचार। उत्तर प्रदेश में करीब 68 प्रतिशत लोग खेती किसानी से अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं। देश की अर्थ व्यवस्था में इनका बहुत बड़ा सहयोग रहता है। कोरोना संक्रमण के वक्त जब हजारों लोग बेरोजगार होकर गांवों और अपने घरों को वापसी करने लगे तो किसानों ने ही सबका सहयोग किया।
उन्होंने खुद को साबित भी कर दिया कि वे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। प्रदेश में 68 फीसद में करीब 93 फीसद छोटे और सीमांत कृषक हैं। चुनाव लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का। हर चुनाव में सियासत का केंद्र किसान ही होते हैं। मंचों से सियासी दल वादे करते हैं। वादों पर सियासी फसलें होती हैं। लेकिन इन फसलों को मुकाम नहीं मिल पाता है। वहीं सियासी दल जितना अन्य सेक्टरों पर ध्यान देते हैं। उतना किसानों और फसलों पर कोई ध्यान नहीं देता है।
रुहेलखंड के बरेली, पीलीभीत, बदायूं और शाहजहांपुर के अलावा लखीमपुर जिलों के बड़ी संख्या में लोग खेती किसानी पर निर्भर हैं। इन किसानों की समस्या है कि उनकी ओर सरकार ध्यान नहीं दे रही है। बरेली के गांव फरीदापुर इनायत खां के लोगों ने बताया कि उन लोगों को छुट्टा पशुओं से काफी परेशानी होती है। वहीं शिवपुरी निवासी धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि गन्ना मिलों से भुगतान नहीं हो पा रहा है। इस ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। किसानों का कहना है कि मंहगाई तो बड़ी है, लेकिन उनकी फसलों का वाजिब मूल्य अब तक नहीं मिल पा रहा है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।
ये है किसानों की मुख्य समस्या
छुट्टा पशुओं की समस्या
किसानों की सबसे बड़ी समस्या छुट्टा पशु हैं। इनकी वजह से किसानों को रात-रात भर जागकर फसलों की रखवाली करनी होती है। रूहेखलंड में गोवंश पशुओं की संख्या बहुत है। किसानों का कहना है कि इनके लिए गोसंरक्षण केंद्र बनाए जाएं। संरक्षण केंद्रों को डेयरी के रूप में विकसित किया जाए। इससे लाभ मिलेगा।
सैलाब की समस्या
लखीमपुर, बरेली, बदायूं पीलीभीत और शाहजहांपुर जिलों का एक बड़ा हिस्सा बारिश के मौसम में सैलाब से भर जाता है। इससे फसलों का नुकसान होता है। बाढ़ के दिनों में ये लोग बेघर हो जाते हैं। फसलों का भी बढ़ा नुकसान होता है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाती है। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।
गन्ना भुगतान न होने पर मिले ब्याज
सरकार ने नियम बनाया है कि यदि 15 दिनों में गन्ना किसानों का भुगतान नहीं होता है तो उन्हें फसल की कीमत पर ब्याज मिलेगा। लेकिन एक एक वर्ष भी कई मिल भुगतान नहीं करते हैं और ब्याज भी नहीं देते हैं। यह प्रावधान लागू न होने से किसानों को दिक्कत होती है। इस ओर जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना चाहिए। सरकार भी किसानों की समस्याओं को देखते हुए ब्याज दिलाए।
फसलों की जांच सामने हो
किसानों ने बताया कि अधिकांश बार फसलों की जांच लेखपाल कागजों में कर लेते हैं। वजह है कि काम की अधिकता के कारण लेखपाल गांवों में नहीं पहुंच पाते हैं। फसलों संबंधित अधिकांश आंकड़े अनुमान पर आधारित होते हैं। उनका कहना है कि जमीन संबंधित कार्य के अलावा किसानों से दूसरे कार्य न लिए जाएं तो बेहतर रहेगा।
व्यवस्था में हो सुधार
सीमांत और छोटे किसानों की तरक्की के लिए कृषक उत्पादक समूहों का गठन की बात हुई है। इसमें भी आधिकांश आदेश कागजों पर ही दिखाई देते हैं, लेकिन हकीकत में नहीं। कृषि कामों में कागजी कार्यवाही तो बहुत होती है, लेकिन हल नहीं होता है। इस पर किसानों ने रोष जताया है। उनका कहना है किसानों की समस्याओं का बेहतर ध्यान दिया जाना चाहिए।
सर्वे के अनुसार बढ़ी किसानों की आय
एक सर्वे के अनुसार किसानों की आय में वृद्धि हुई है। एनएसएस का एक सर्वे बताता है कि वर्ष 2014 और 2019 के बीच किसानों की आय में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर किसान की वार्षिक आय करीब 23 हजार रुपये हो गई है। वहीं यूपी में किसान की आय करीब 14500 तक पर ही सिमट गई। इसी अवधि में लिए गए कर्ज का बोझ भी किसानों पर यूपी में कम ही बढ़ा है। राष्ट्रीय स्तर पर औसत कर्ज 27 हजार के करीब रहा है। वहीं यूपी में यह करीब 24 हजार तक ही बढ़ा।
किसान हित में हुए काम
- गन्ना मूल्य पर 25 रुपये बढ़ाए गए हैं।
- छोटे और सीमांत किसानों का एक लाख रुपये तक का फसली ऋ ण माफ किया गया है।
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का से 6000 रुपये प्रति वर्ष दिए जा रहे हैं
- पहले 50 प्रतिशत फसल का नुकसान होने पर बीमा मिलता था, लेकिन अब 33 प्रतिशत नुकसान पर भी बीमा मिलने का प्रावधान है
किसानों के लिए हुए ये बड़े काम
किसानों को मिले प्रोत्साहन
किसानों ने बताया कि उन्हें बिजली फ्री दी जाए। ताकि फसलों की सिंचाई हो सके। एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री की संख्या बढ़ाई जाए। निजीकरण पर लगाम लगे। उद्योगों को बढ़ावा मिले, जिससे रोजगार के अवसर मिलें। किसानों के बच्चों को शिक्षा के लिए एजुकेशन हब बनाया जाए, जिससे उनके बच्चे भी शिक्षा हासिल कर सकें। इसके अलावा गन्ना भुगतान समय पर किया जाए। यदि 14 दिन में मिल भुगतान न करें तो मिलों से ब्याज दिलाया जाए।
जनपद शाहजहांपुर
- 4.98 लाख जिले में किसान
- 98 हजार हेक्टयर गन्ने का रकबा
- 3.50 लाख सीमांत किसान
- 1.50 लाख ब्रह्द किसान
- 2.68 लाख गेहूं का रकबा
- 1.70 लाख धान का रकबा
- 7 हजार तिलहन का रकबा
- 4 लाख 58 हजार 871 सम्मान निधि पाने वाले किसान
लखीमपुर खीरी
- 764955- पंजीकृत किसान
- 645000- किसान सम्मान निधि ले रहे किसान
- 362000- हेक्टेयर हो रही जिले में गन्ना की खेती
बरेली जनपद
- 5,64,000- जिले में कुल किसान
- 4,97,000- किसान सम्मान निधि ले रहे कृषक
- 3,98,650- छोटे और सीमांत किसान-
- 1.92 लाख- गन्ना किसान
- 1,10,874- बीघा में होती है गन्ना फसल की खेती
किसान नेता बोले
भाजपा की सरकार किसान विरोधी है। किसानों की किसी भी समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सबसे बड़ी समस्या छुट्टा पशु हैं, जिनके कारण किसानों को रातभर जागकर खेतों में काटनी पड़ रही है। बिजली महंगी कर दी गई है, लेकिन इतनी बार कटौती की जाती है कि सिंचाई नहीं हो पा रही है। धान के सरकारी सेंटरों पर बिचौलिए हावी हैं, जिससे धान की तौल नहीं हो पा रही है। गन्ना भुगतान की समस्या बरकरार है। इस तरह किसान हर ओर से बेहाल है। फसल उगाना मुश्किल हो रहा है। किसी तरह फसल कट जाए तो उसे बेचना मुश्किल है और यदि बिक जाए तो भुगतान नहीं होता। इससे किसान बेहाल है। -सरदार अजीत सिंह, तराई क्षेत्र अध्यक्ष
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड।
कृषि प्रधान देश में किसान ही जार जार रो रहा है। हर ओर से किसान मारा जा रहा है। चाहें सुविधाओं की बात हो या फिर उपज की बिक्री और भुगतान का मामला हो, किसान को कहीं भी सहूलियत नहीं है। फसल उगाने के लिए खाद और बीज मिलने का संकट, फिल छुट्टा पशुओं से फसल बचाना मुश्किल होता है। उपज के वाजिब दाम तक नहीं मिल पा रहे हैं। धान, गेहूं, गन्ना जैसी प्रमुख फसलों की बर्बादी झेल रहा किसान कंगाल हो चुका है। छुट्टा पशुओं के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। बिजली महंगी होती जा रही है। कुल मिलाकर भाजपा की सरकार में किसान परेशान हैं और धरना प्रदर्शन के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है। -गगनदीप सिंह, मीडिया प्रभारी
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड (तराई क्षेत्र)।
गन्ना किसानों की जो दुर्गत भाजपा सरकार में हुई है, सपा के शासनकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ। चीनी मिलें नियमित भुगतान करती रहीं। वह सदैव किसानों के साथ खड़े रहे हैं। गन्ना किसानों का भुगतान कराने के लिए उनसे जो बन पड़ेगा वह करेंगे और सपा की सरकार बनने पर पिछला कुल बकाया और नया नियमानुसार भुगतान कराएंगे। भाजपा सरकार ने अपने एजेंडे में गन्ना भुगतान प्राथमिकता से लिया था जो वादा पूरा नहीं कर पाई। किसान अब और अधिक सजग हो गया है। इससे उनकी पार्टी का सत्ता में आने का मार्ग भी प्रशस्त होने लगा है। -विनय तिवारी पूर्व विधायक सपा
भाजपा सरकार किसानों की हितकारी है। किसानों की आय दुगनी करने के भी प्रयास कर रही है। सरकार ने किसानों को गन्ना भुगतान के लिए चीनी मिलों को आर्थिक मदद भी दी है। उनके क्षेत्र की गुलरिया और कुंभी चीनी मिल पिछले सत्र का पूरा भुगतान कर चुकी है और नए सत्र का 14 दिन के अंदर ही भुगतान कर रही हैं। केवल बजाज हिंदुस्थान शुगर लि गन्ना किसानों का भुगतान रोके है, जिसके लिए वह निरंतर अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं। मिल मालिक और स्थानीय चीनी मिल अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा चुके हैं। वह गन्ना किसानों का भुगतान कराने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। -अरविंद गिरि – विधायक गोला
सरकार गन्ना किसानों की हितकारी नहीं है। सरकार के एक इशारे पर चीनी मिल पिछली सीजन का पूरा और नए सीजन का कोर्ट के आदेशानुसार भुगतान कर सकती है। किसानों के धरना प्रदर्शन पर डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने कहा था कि पावर प्लांट का सरकार से रुपया मिल जाए तो किसानों का भुगतान हो जाएगा। सरकार ने बजाज समूह को बकाया भुगतान कर दिया है, फिर भी चीनी मिल गन्ना किसानों का भुगतान रोके है। साथ ही पिछली सीजन की सारी चीनी बिक जाने के बाद नियमतः एस्क्रो एकाउंट में भी धन जमा नहीं हुआ। किसान आर्थिक प से टूट जाने से गुस्से में है। जो कह भले न सके चुनाव में अपना असर दिखाएगा। – रामसिंह वर्मा – पूर्व जिलाध्यक्ष भाकियू
गन्ना भुगतान के लिए उनके धरना प्रदर्शन पर बजाज समूह के नोयडा के अधिकारी और जिले के प्रशासनिक अधिकारी आए थे। जिन्होंने लिखित आश्वासन दिलाया कि पिछली सीजन का पूरा भुगतान और नए सीजन का 14 दिन में भुगतान करा देंगे। लेकिन वह अधिकारी भी मिल प्रबंधन पर दबाव नहीं बना पा रहे हैं। उनका कहना है कि खाद, बीज, डीजल के लिए दुकानों और पेट्रोल पंप पर मिल प्रबंधन उधार की व्यवस्था कर दे। और जब गन्ने का भुगतान हो तो सबसे पहले दुकानदारों का भुगतान करे, किसान सहमत है। भाजपा सरकार और उसके नुमाइंदे चुनावी समय में भी हवा हवाई ख्वाब देख रहे हैं। क्षेत्र का किसान राजनीति की गणित बिगाड़ सकता है। – श्रीकृष्ण वर्मा- निवर्तमान जिलाध्यक्ष राट्रीय किसान मजदूर संगठन
किसानों को सबसे अधिक समस्या छुट्टा पशुओं से हो रही है। डीजल मंहगा हो गया है। इससे किसानों के सामने फसलों की सिंचाई की समस्या आ रही है। बिजली कनेक्शन नहीं हो पा रहा है। मेरे गांव में एक भी ट्यूबेल का बिजली कनेक्शन नहीं है। कई बार चक्कर काट चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर रहता है। गन्ना का भुगतान भी नहीं हो पा रहा है। किसानो को समय से गन्ना का भुगतान मिलना चाहिए। समय से भुगतान न होने पर ब्याज की बात की जाती है, लेकिन ब्याज नहीं मिलता है। – राजकुमार – फरीदापुर इनायत खां बरेली
किसानों के सामने समस्या ही समस्या है। समय पर गन्ना का भुगतान नहीं होता है। धान और गेहूं क्रय केंद्र माफियाओं के हवाले हैं। छुट्टा पशुओं के कारण फसलें बर्बाद हो रही हैं। रात रात भर जागकर फसलों की रखवाली करनी होती है। डीजल मंहगा होने से फसल करना भी मंहगा हो गया है। लेकिन किसी तरह का लाभ नहीं होता है। सरकार अन्य वस्तुओं पर तो जीएसटी लगा रही है। लेकिन फसलों पर कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। -उरमान सिंह – फरीदापुर इनायत खां बरेली