रामपुर: रेडिको खेतान और आर्ट आफ लिविंग का भूजल प्रोजेक्ट फंसा, नहीं शुरू हुआ काम

रामपुर: रेडिको खेतान और आर्ट आफ लिविंग का भूजल प्रोजेक्ट फंसा, नहीं शुरू हुआ काम

रामपुर, अमृत विचार। कोसी नदी बचाने और डार्क जोन में पहुंचे ब्लाकों में भू-गर्भ जलस्तर उठाने के लिए रेडिको खेतान और आर्ट आफ लिविंग का भूजल प्रोजेक्ट सरकार के नियम कायदों और सुरक्षा मानकों में फंस गया है। इसीलिए प्रोजेक्ट के प्रथम चरण पर काम शुरू नहीं हो सका। इसके लिए लालपुर से मदारपुर तक …

रामपुर, अमृत विचार। कोसी नदी बचाने और डार्क जोन में पहुंचे ब्लाकों में भू-गर्भ जलस्तर उठाने के लिए रेडिको खेतान और आर्ट आफ लिविंग का भूजल प्रोजेक्ट सरकार के नियम कायदों और सुरक्षा मानकों में फंस गया है। इसीलिए प्रोजेक्ट के प्रथम चरण पर काम शुरू नहीं हो सका। इसके लिए लालपुर से मदारपुर तक भूमिगत डायक वॉल बनाने की योजना थी। इसमें प्रदेश सरकार को मनरेगा से करीब 20 करोड़ रुपये खर्च करने थे।

इस प्रोजेक्ट का मकसद कोसी नदी को बचाना और आसपास के ब्लाकों में डार्क जोन को रीचार्ज करके भू जलस्तर को सुधारना था। इसके लिए आर्ट आफ लिविंग संस्था ने बेंगलुरू से आठ विशेषज्ञों को रामपुर भेजा था। संस्था ने कर्नाटका में ऐसे ही प्रोजेक्ट के जरिए भू जलस्तर को सुधारा था और नदी को अविरल बनाने के लिए काम किया था जिसमें कामयाबी मिली थी। रेडिको खेतान के चेयरमैन डा. ललित खेतान ने विशेष तौर पर इसे रामपुर में शुरू कराने की योजना आर्ट आफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर जी से अनुरोध करके बनाई थी।

इसके लिए आर्ट ऑफ लिविंग की टेक्निकल टीम ने कोसी नदी का सर्वेक्षण किया था। उसके बाद टेक्निकल डाटा आर्ट ऑफ लिविंग के बेंगलुरु स्थित टेक्निकल लैब में जाकर विश्लेषण किया गया। कोसी नदी एवं उसके आसपास के क्षेत्र की वास्तविक स्थिति के बारे में विस्तृत रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रस्तुत की गयी। इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 25 करोड़ बताई गई थी, जिसमें सर्वेक्षण पर पांच करोड़ रुपये रेडिको खेतान ने खर्च किए थे।

मनरेगा से काम होने में फंसा पेच
प्रोजेक्ट को मनरेगा से पूरा कराने के लिए प्रस्तावित किया गया था। इस काम के लिए करने में मनरेगा के तहत होने में दिक्कत आई क्योंकि कोई स्टीमेट नहीं दिया गया। जिस तरह से नौ मीटर गहर गड्डे खोदने और बोरा में भरकर रेता लगाने और अंदर मजदूरों को उतारने की बात कही गई थी वह मनरेगा काम के मानकों की गाइड लाइन के लिहाज से विरोधाभासी थी। यदि ढांग गिर गई कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होता।

मनरेगा काम के मानकों के मुताबिक प्रोजेक्ट नहीं होने के कारण आपत्ति लग गई। जिससे 20 करोड़ राशि को मनरेगा के तहत खर्च करने में तकनीकी दिक्कतें सामने आना बताई गईं हैं। शासन स्तर से भी इस प्रोजेक्ट के लिए हरीझंडी नहीं मिली है। जिससे दिसंबर से शुरू होने वाला काम शुरू नहीं हो सका।

एनजीटी से अनुमति बिना काम नहीं हो सकता
अधिकारियों का कहना है कि कोसी नदी में भूमिगत डायक वॉल जमीन की सतह के नीचे बहने वाले पानी के स्रोत, जो रेत और मिट्टी के माध्यम से बहते हैं, उसके बहाव को रोकने को बनाए जाने थे। भूमि की सतह के नीचे बहने वाले पानी को भूमिगत डायक वॉल पर रोका जाना था। जिसके फलस्वरूप भूमिगत डायक वॉल के दोनों ओर 3 से 4 किलोमीटर तक भूगर्भ जल का स्तर सामान्य होने की बात कही गई थी। लेकिन इस काम को शुरू करने से पहले नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल की अनुमति होना जरूरी बताया गया।

प्रोजेक्ट का अध्ययन करने के बाद राय ली गई तो यह प्रोजेक्ट मनरेगा की गाइड लाइन के तहत नहीं पाया गया। इसीलिए फिलहाल इस पर रोक लग गई है। मनरेगा के तहत प्रोजेक्ट नहीं हो सकेगा। – प्रभु दयाल, डीसी मनरेगा।

प्रोजेक्ट में कई तकनीकी खामियां थीं। जिस तरह कर्नाटका में नदी पर काम करने का उदाहरण दिया गया। वहां और यहां की मिट्टी में बहुत अंतर था। वहां सख्त मिट्टी है। कोसी में डेढ़ मीटर के बाद पानी ऊपर आ जाता है। नौ मीटर पानी में खुदाई करके वॉल बनाना संभव नहीं था, मिट्टी की ढांग गिरने से कोई हादसे की आशंका थी। चीफ इंजीनियर की तरफ से इस पर आपत्ति जताई गई। नदी में बिना एनजीटी से अनुमति कोई काम भी नहीं किया जा सकता था। – सियाराम, अधिशासी अभियंता, सिंचाई

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