काला नमक का गौरवशाली इतिहास भगवान बुद्ध के समय से : डॉ. चौधरी

काला नमक का गौरवशाली इतिहास भगवान बुद्ध के समय से : डॉ. चौधरी

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के 40वें दीक्षांत समारोह सप्ताह के अन्तर्गत ‘जर्मप्लाज्म टू जेमप्लाज्म : स्टोरी ऑफ काला नमक राइस’ विषयक व्याख्यान का आयोजन कृषि संकाय द्वारा संवाद भवन में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामचेत चौधरी (चेयरमैन, पीआरडीएफ, गोरखपुर) उपस्थित रहे। …

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के 40वें दीक्षांत समारोह सप्ताह के अन्तर्गत ‘जर्मप्लाज्म टू जेमप्लाज्म : स्टोरी ऑफ काला नमक राइस’ विषयक व्याख्यान का आयोजन कृषि संकाय द्वारा संवाद भवन में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामचेत चौधरी (चेयरमैन, पीआरडीएफ, गोरखपुर) उपस्थित रहे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. चौधरी ने कहा कि काला नमक चावल का इतिहास भगवान बुद्ध के समय का है। अनुसंधान न होने से इस चावल की उत्पादकता के साथ ही स्वाद-सुगंध कम होने लगी थी। उत्पादन कम होने के कारण किसान मुंह मोड़ने लगे थे। काला नमक को डॉ. रामचेत चौधरी के प्रयासों से 2010 में भौगौलिक सम्पदा (जीआई) घोषित किया गया। समान जलवायु वाले 11 जनपदों गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा और श्रावस्ती को काला नमक चावल के लिए जीआई टैग मिला।

जीआई टैग मिलने के कारण इस किस्म को खास पहचान मिली है। पूर्वांचल में 2009 तक लगभग दो हजार हेक्टेयर जमीन में ही काले नमक चावल की खेती होती थी जो अब बढ़कर लगभग पचास हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। चावल की इस किस्म का रकबा 1 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कालानमक को सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित किया। बाद में इसे बस्ती, गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीर नगर का भी एक जिला एक उत्पाद घोषित कर दिया गया।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामचेत चौधरी काला नमक चावल को बेहतरीन पोषक तत्वों के कारण भगवान बुद्ध का प्रसाद मानते हैं। अन्य चावल की तुलना में कालानमक में आयरन 3 गुना और जिंक 4 गुना अधिक होता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स अन्य चावल से कम होने से इसे शुगर फ्री की श्रेणी में रखा जा सकता है तथा डायबिटीज के रोगी भी इसका सेवन कर सकते हैं।

डॉ. चौधरी ने बताया कि जब उन्होंने इस प्राचीन धान को व्यावसायिक बनाने के लिए रिसर्च शुरू किया तब सिद्धार्थनगर में कोई 250 किस्म के नमूने एकत्र किए गए। हमने इसमें से सबसे शुद्ध एक धान को पकड़ा। उस पर गहन अनुसंधान किया गया। केंद्र सरकार ने 2010 में केएन-3 के नाम से बीज बनाने के लिए नोटिफाई किया। बाद में दो क्रमशः 101, 102 तथा किरन नामक बौनी प्रजाति विकसित की गई, जो पहले से अधिक सुगंधित एवं उच्च उपज वाली प्रजाति थी।

कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य डॉ. के. सुनीता ने दिया। संचालन कृषि संकाय की शिक्षिका डॉ. प्रीति एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निखिल कांत शुक्ला ने किया। कार्यक्रम में कृषि संकाय के सह समन्वयक दीपेंद्र मोहन सिंह, डॉ. आर. पी. यादव समेत बड़ी संख्या में शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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