कल गणेश और भगवान विष्णु का एक संग मिलेगा आशीर्वाद, ऐसे करें पूजा

भाद्रपद मास के चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, इसे अनंत चौदस भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखकर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन 11 दिन तक चलने वाले गणेशोत्सव का भी समापन होता है और गणेश जी का विसर्जन करते …
भाद्रपद मास के चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, इसे अनंत चौदस भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखकर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन 11 दिन तक चलने वाले गणेशोत्सव का भी समापन होता है और गणेश जी का विसर्जन करते हैं।
ऐसे करें गणेश विसर्जन
गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित करने से पहले उसकी विधि विधान पूजा करें। उन्हें मोदक और फल का भोग लगाकर उनकी आरती उतारे और उनसे विदा लेने की प्रार्थना करें। इसके बाद एक पटली पर गुलाबी कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल जरूर छिड़कें। फिर गणेश जी की प्रतिमा को लकड़ी के पटली पर रखें। अब फल फूल, कपड़े और मोदक रखें।
चावल, गेहूं और पंचमेवा रखकर एक पोटली तैयार करें और उसमें कुछ सिक्के भी डालें। इस पोटली को गणेश जी की प्रतिमा के साथ रखें। इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जायें। विसर्जन स्थान पर पहुंचकर विसर्जन से पहले एक बार फिर गणेश जी की आरती करें और उनसे अगले वर्ष जल्द आने की प्रार्थना करें और अपने परिवार की खुशहाली और मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध करें। फिर गणेश जी की मूर्ति को बहते हुए जल में विसर्जित कर दें।
विसर्जन का शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 19 सितंबर, 2021,रविवार को सुबह 05:59 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 20 सितम्बर, 2021, सोमवार को सुबह 05:28 बजे
अनंत चतुर्दशी का महत्व
अनंत चतुर्दशी के दिन श्रीहरि भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इसीलिए इसे अनंत चतुर्दशी कहते हैं। भगवान विष्णु ने ऋष्टि की रचना में 14 लोकों यानि तल, अतल, वितल, सुतल, सलातल, रसातल, पाताल, भू, भव:, स्व:, जन, तप, सत्य मह की रचना की थी। इन समस्त लोकों की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने अनंत रूप धारण किए थे, जिससे वह अनंत प्रतीत होने लगे।
ऐसे करें पूजा
अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके स्थान साफ करें और व्रत का संकल्प ले। इस दिन भगवान विष्णु को पीले फूल अर्पित करें और पीले फल और मिठाई का भोग लगाएं। इस दिन भगवान के चरणों में अन्नत सूत्र समर्पित करना चाहिए इसके बाद उस रक्षा सूत्र खुद धारण करना चाहिए।
कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई थी। इसकी कथा के अनुसार सुमंत नामक एक वशिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे। उनका विवाह महर्षि भृगु की कन्या दीक्षा से हुआ। इनकी पुत्री का नाम सुशीला था। दीक्षा के असमय निधन के बाद सुमंत ने कर्कशा से विवाह किया।
पुत्री का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ। किंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधनहीन हो गई। वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पंहुची, तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते देखा। महिलाओं ने अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा बताते हुए कहा कि अनंत सूत्र बांधते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए और इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए।
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