लखीमपुर खीरी: स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने गोला आए थे नेताजी सुभाषचंद्र बोस
गोला गोकर्णनाथ/लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। देश की आजादी में लखीमपुर खीरी के सेनानियों का बहुत योगदान रहा है। यहां के सेनानियों को नेताजी सुभाषचंद्र बोस का भी सानिध्य प्राप्त हुआ था। इसके लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस चार बार खीरी आए। 22 जून 1940 को लखीमपुर शहर में भ्रमण कर गोला में मजदूरों की सभा की थी। …
गोला गोकर्णनाथ/लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। देश की आजादी में लखीमपुर खीरी के सेनानियों का बहुत योगदान रहा है। यहां के सेनानियों को नेताजी सुभाषचंद्र बोस का भी सानिध्य प्राप्त हुआ था। इसके लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस चार बार खीरी आए। 22 जून 1940 को लखीमपुर शहर में भ्रमण कर गोला में मजदूरों की सभा की थी।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का खीरी का पहला दौरा 27 मार्च 1935 को हुआ था। तब उन्हें छत्रपति शिवाजी के गुरिल्ला युद्ध से प्रेरणा लेकर खीरी में गुरिल्ला युद्ध कर अंग्रेजों की सेना को प्राप्त करने की बात मालूम हुई। तब वह पहली बार पलिया कलां पहुंचे। पहले दौरे में ही उनसे लखीमपुर के स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर करण सिंह ने मुलाकात की थी तो नेताजी ने उनसे बताया था कि छत्रपति शिवाजी के बताए रास्ते पर ही गुरिल्ला युद्ध कर अंग्रेजों को परास्त किया जा सकता है।
उन्होंने खीरी में चल रहे गुरिल्ला युद्ध की सराहना भी की। वह एक दिन रुके और दूसरे दिन 28 मार्च को लखीमपुर के मेला मैदान में सभा की।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का दूसरा दौरा 22 जनवरी 1940 की शाम को हुआ। दूसरे दिन नेताजी का जन्म दिवस था। लोगों ने उनसे जन्मदिवस पर रुकने का आग्रह किया किंतु वह उत्तरांचल चले गए। नेताजी का तीसरा दौरा 22 जून 1940 को हुआ तो उन्होंने लखीमपुर शहर में भ्रमण कर गोला में मजदूरों की सभा की। इस दौरान युवक संघ की ओर से उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धन की थैली और मांग पत्र दिया गया।
इस दौरे के कुछ दिन बाद ही नेताजी को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस पर खीरी के सेनानियों ने फिरंगी साम्राज्य का पुरजोर विरोध करते हुए जिले भर में जेल भरो आंदोलन चलाया। जेल से छूटने के बाद नेताजी चौथी बार लखीमपुर आए थे और आंदोलन के प्रति आभार व्यक्त किया था। नेताजी की गिरफ्तारी के विरोध प्रदर्शन में नेतृत्व करने वाले चंद्रभाल और शांति स्वरूप को 12 अगस्त 1940 को 18 माह की कैद और 25 रुपये जुर्माने की सजा, रामअवतार शर्मा को 23 अगस्त 1940 को 14 माह की कैद की सजा सुनाई गई थी।