बड़ा फैसला

राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की है। शीर्ष अदालत ने उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं करने के लिए राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया है। इन पार्टियों में भाजपा और कांग्रेस सहित दस दल शामिल हैं। न्यायाधीश एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति विनीत सरन …
राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की है। शीर्ष अदालत ने उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं करने के लिए राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया है। इन पार्टियों में भाजपा और कांग्रेस सहित दस दल शामिल हैं।
न्यायाधीश एनवी रमन्ना, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने मंगलवार को अहम फैसला देते हुए आदेश दिया है कि राजनीतिक दल, चयन के 48 घंटों के भीतर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को जनता को सूचित करें। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अदालत की तमाम अपीलें बहरे कानों तक नहीं पहुंच पाई हैं। राजनीतिक पार्टियां अपनी नींद से जगने को तैयार नहीं हैं।
अदालत के हाथ बंधे हैं। यह विधायिका का काम है। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि सांसदों, विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज आपराधिक मामले उच्च न्यायालय की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिए जा सकेंगे। अदालत ने पिछले साल नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़े एक मामले में कहा था कि सभी राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि उन्होंने आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को क्यों चुना। उच्चतम न्यायालय का आज का फैसला काफी अहम इसलिए है क्योंकि राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण को ख़त्म किए जाने की वकालत लगातार की जाती रही है।
हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों का मामला भी नया नहीं है। चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में चुनाव के बाद संसद के निचले सदन के नए सदस्यों में से लगभग 43 प्रतिशत ने आपराधिक आरोपों का सामना करने के बावजूद जीत हासिल की।
एडीआर की ही एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा था कि 2004 के राष्ट्रीय चुनाव में लंबित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत 24 था, जो 2009 में बढ़कर 33 प्रतिशत, 2014 में 34 प्रतिशत था जो 2019 में और ज्यादा बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया। राजनीति को बेदाग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की इस कार्रवाई को सही माना जा रहा है। हालांकि ये काम चुनाव आयोग को करना चाहिए।