स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गढ़ था कुमाऊं का यह आश्रम, अंग्रेजों के खिलाफ बनती थी यहां रणनीति

वर्तमान में कांग्रेस भवन में तब्दील हो चुका हल्द्वानी का स्वराज आश्रम किसी जमाने में स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकों का केंद्र हुआ करता था। अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाकर क्रांति की अलख जगाई जाती थी। साथ ही जेल भरने को जत्थे भी निकलते थे। स्वराज आश्रम आजादी की लड़ाई और संघर्ष का जीता-जागता उदाहरण है। …
वर्तमान में कांग्रेस भवन में तब्दील हो चुका हल्द्वानी का स्वराज आश्रम किसी जमाने में स्वतंत्रता सेनानियों की बैठकों का केंद्र हुआ करता था। अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाकर क्रांति की अलख जगाई जाती थी। साथ ही जेल भरने को जत्थे भी निकलते थे। स्वराज आश्रम आजादी की लड़ाई और संघर्ष का जीता-जागता उदाहरण है। ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत करने वालों का गढ़ होने की वजह से पुलिस व गुप्तचर विभाग हमेशा स्वराज आश्रम की निगरानी करता था।
आश्रम को ठिकाना बनाने वाले क्रांतिकारी तमाम जुल्म सहने के बावजूद कभी झुके नहीं। अब्दुल मजीद, मथुरा दत्त पहलवान, पीतांबर सनवाल, धन सिंह नेगी, बालकृष्ण आजाद, हीरा बल्लभ बेलवाल, मदन मोहन उपाध्याय, श्रीराम शर्मा, खुशी राम, भागीरथी देवी, रेवती देवी समेत कई बड़े नाम स्वराज आश्रम से जुड़े थे।

स्वराज आश्रम के प्रवेश द्वार पर बने कोठरियों में बाबा बिशन गिरी, दलीप सिंह, शिवनारायण सिंह और बाबूराम कप्तान जैसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी सालों तक रहे। वहीं, अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले जोगा सिंह, नंदन सिंह, गोविंद राम शर्मा, शंकर लाल हलवाई, शंकर लाल अग्रवाल आदि को पुलिस ने कई बार स्वराज आश्रम से ही गिरफ्तार किया गया। उसके बावजूद हौसलों और संघर्ष में कभी कमी नहीं आई।
यही नहीं स्वराज आश्रम महिलाओं में राजनीतिक व सामाजिक चेतना भरने का केंद्र भी बना रहा। ललित महिला इंटर कॉलेज की नींव यहीं से पड़ी। इसके अलावा शराब व जंगल में ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ महिलाएं भी यहां से आंदोलन की रणनीति बनाती थी। आजादी के बाद खस्ताहाल स्थिति में पहुंच चुके स्वराज आश्रम का जीर्णोद्वार नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश द्वारा मंत्री रहते हुए किया गया था। हल्द्वानी में गोविंद बल्लभ पंत, रामशरण सारस्वत व बाबूराम कप्तान के नेतृत्व में कांग्रेस की स्थापना भी स्वराज आश्रम में ही हुई थी।