Lyricist Gulzar
साहित्य 

किताबें!

किताबें! किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं. महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं. अब अक्सर ……. गुज़र जाती हैं ‘कम्प्यूटर’ के पदों पर. बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें …. इन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है बड़ी हसरत …
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