पीलीभीत: स्वास्थ्य कर्मियों पर लगे आरोपों की जांच को टीम गठित

पीलीभीत, अमृत विचार। सड़क हादसे में घायल हुए ग्रामीण की मौत के बाद जिला अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों पर परिवार की ओर से लगाए गए संगीन आरोपों की जांच के लिए सीएमएस ने कमेटी गठित कर दी है। इसमें जिला अस्पताल के ही तीन चिकित्सकों को शामिल किया गया है। उनसे दो दिन के भीतर जांच …

पीलीभीत, अमृत विचार। सड़क हादसे में घायल हुए ग्रामीण की मौत के बाद जिला अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों पर परिवार की ओर से लगाए गए संगीन आरोपों की जांच के लिए सीएमएस ने कमेटी गठित कर दी है। इसमें जिला अस्पताल के ही तीन चिकित्सकों को शामिल किया गया है। उनसे दो दिन के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट मांगी गई है।

टीम में शामिल चिकित्सक ने परिवार के लोगों को इसकी जानकारी देने के साथ ही बयान देने के लिए बुलाया है। उधर, जांच टीम गठित होने का पता लगते ही कर्मियों में हड़कंप मच गया है। प्रकरण से जुड़े तमाम कर्मचारियों को खुद पर गाज गिरने का डर सता रहा है।

उत्तराखंड के पोलीगंज निवासी जोगेंद्र सिंह बुधवार को काम के सिलसिले में न्यूरिया आए थे। साइकिल से वापस जाते वक्त टनकपुर हाईवे पर एक मजार शरीफ के पास कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी। गंभीर हालत में उन्हें जिला अस्पताल भर्ती कराया गया। जहां इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद परिवार के लोगों ने हंगामा कर दिया था। इलाज में लापरवाही बरतने के आरोप स्वास्थ्यकर्मियों पर लगाए गए थे। इसकी शिकायत भी सीएमएस से की गई थी। गुरुवार को शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।

उधर, सीएमएस डॉ. विजय कुमार श्रीवास्तव ने परिवार की ओर से लगाए गए आरोपों का सच जानने के लिए जांच टीम गठित की है। इसमें फिजीशियन डॉ. रमाकांत सागर, डॉ. ए के ब्यास, डॉ. पीके अग्रवाल को शामिल किया गया है। टीम को सभी बिंदुओं पर जांच करने के बाद दो दिन में रिपोर्ट देनी होगी। इसके लिए पीड़ित परिवार को भी सूचित कर दिया गया है। उन्हें बयान देने के लिए बुलाया गया है।

परिजन बोले- तड़पता रहा मरीज, सुनी नहीं
मृतक के परिवार के ही मलकीत सिंह ने बताया कि घायल हालत में वह जोगेंद्र को जिला अस्पताल की इमरजेंसी में लेकर पहुंचे थे मगर, शुरुआत से ही लापरवाही बरती जा रही थी। इलाज के नाम पर औपचारिकता निभाने के बाद उन्हें वार्ड में भेज दिया गया। वह दर्द से तड़पते रहे लेकिन कोई सुनने को राजी नहीं था। यह कह दिया जा रहा था कि अभी उनके मरीज को देखने का नंबर नहीं आया है।

दिक्कत बढ़ती गई तो फिर से कर्मचारियों के पास गए। इस पर यह कह दिया गया कि डॉक्टर मरीज को देखने के लिए 24 घंटे बाद आएंगे। प्रधान जी से फोन पर बात कराई तो उनसे भी अभद्रता कर दी गई। मरीज की कोई जांच तक नहीं कराई गई। जब मौत हो गई तो खुद के बचाव को दौड़-भाग करना शुरू कर दिया।

यह भी कहा कि अगर हालत गंभीर बनी हुई थी और जिला अस्पताल में इलाज नहीं हो पा रहा था तो उनके मरीज को रेफर कर दिया जाना चाहिए था। हो सकता है कि किसी अन्य अस्पताल में ले जाकर बचाया जा सकता मगर, ऐसा नहीं किया गया। मामले में दोषी कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।

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