बरेली: लुप्त होते जा रहे हैं ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने वाले कुएं

शेरगढ़, अमृत विचार । कभी ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने वाले कुएं धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। वह भी एक दौर था जब विवाह के अवसर पर दूल्हे राजा के साथ महिलाएं कुआं का पूजन कर दूल्हा दुल्हन के विवाह बंधन की रश्म को आध्यात्मिक बल प्रदान करती थीं। दूल्हे की मां अथवा …
शेरगढ़, अमृत विचार । कभी ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने वाले कुएं धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। वह भी एक दौर था जब विवाह के अवसर पर दूल्हे राजा के साथ महिलाएं कुआं का पूजन कर दूल्हा दुल्हन के विवाह बंधन की रश्म को आध्यात्मिक बल प्रदान करती थीं।
दूल्हे की मां अथवा दादी मां कुआं की मन पर बैठ अपना एक पैर कुएं में लटकाए लाडले को लाल बहु लाने का आशीर्वाद दे उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं देती थीं और तब तक नहीं उठती थीं कि जब तक आंखों का तारा बहु लाने का वादा कर उठा नहीं लेता था लेकिन वैवाहिक संगम के अवसर पर आध्यात्मिकता का बोध कराने वाले कुआं अब दिखाई नहीं देते कुएं के अभाव में कुआं पूजन की रश्म मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है।
यूं कहें कि कुओं को पाटकर कर उन पर कब्जा कर लिया गया या फिर उन्हें ढक दिया गया कई जगह तो लोगों ने कुओं को अपने आगोश में लेकर मकान तक खड़े कर लिए। वह भी एक जमाना था जब महिलाएं रस्सी में घड़ा बांधकर पानी भरती थीं और घड़े का ठंडा जल गर्मी के मौसम में आनंद की अनुभूति कराता था लेकिन शायद वो पुराने दिन गुजरे जमाने की बात हो चले हैं।
हमारी अदूरदर्शिता के चलते बुजुर्गों की परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर हैं हालांकि शासन-प्रशासन जल संरक्षण पर जरूर जोर दे रहा है लेकिन जागरूकता के अभाव में कुआं जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्था दम तोड़ती जा रही है और हम हाथ पर हाथ रखे बुजुर्गों की बहुमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखने में असफल साबित हो रहे हैं। ऐसे बेहतरीन पनघट के सीन फिल्मों में भले ही फिल्माए जाते रहे हों लेकिन क्षेत्र में पनघट (कुआं) पर पानी भरने की परंपरा गुजरे जमाने की बात हो चली है।
डिजिटल इंडिया के दौर में हम धीरे-धीरे अपने वंशजों की पुरानी धरोहर को भूलते जा रहे हैं। बता दें कि दशकों पूर्व अधिकांश गांवों में पेयजल एवं खेतों की सिंचाई का प्रमुख साधन कुआं ही हुआ करते थे। वहीं आधुनिक युग में जल संरक्षण का प्रमुख संसाधन लुप्त होने के कगार पर है।
आने वाली पीढ़ी सिर्फ किताबों में ही कुओं की तस्वीरें देखकर मात्र कल्पना कर सकेगी जो कुएं हजारों की आबादी वाले गांवों के लोगों की प्यास बुझाने के साथ फसल सिंचाई के काम आते थे बे अब पानी विहीन हैं और अवाम ने उन्हें डलावघर बना लिया है। वह भी एक दौर था जब सुबह-सुबह लोग रस्सी और बाल्टी लेकर कुएं पर पहुंच जाते थे। अब तो शहर से लेकर गांव तक लोग नल मोटर तथा समरसेबल जैसे सरल माध्यमों पर निर्भर हैं और पुरानी कुआं जैसी महत्वपूर्ण धरोहर का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।
गुजरे जमाने में कुआं पेयजल एवं सिंचाई का बड़ा स्रोत हुआ करते थे जो अब धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं सभी को सामूहिक रूप से इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि बुजुर्गों की पुरानी परंपरा को संजीवनी मिल सके।
ये भी पढ़ें-
बरेली: नवाबगंज में वोट डालने को लेकर टकराव की बनी स्थिति, एसडीएम ने संभाली