बरेली: ग्रेनेड से छलनी होने पर भी हरिपाल ने झुकने नहीं दिया था तिरंगा

शिवांग पांडेय, अमृत विचार। 18 जुलाई 1999 की तड़के 4 बजे थे। राष्ट्रीय राइफल्स की एक कंपनी के 10 जवानों को द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों की रेकी के लिए भेजा। इस कंपनी में बरेली के हरिपाल सिंह भी मौजूद थे। हालातों को देखते हुए सभी जवान सावधानी से कदम रखते हुए आगे बढ़ रहे थे …
शिवांग पांडेय, अमृत विचार। 18 जुलाई 1999 की तड़के 4 बजे थे। राष्ट्रीय राइफल्स की एक कंपनी के 10 जवानों को द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों की रेकी के लिए भेजा। इस कंपनी में बरेली के हरिपाल सिंह भी मौजूद थे। हालातों को देखते हुए सभी जवान सावधानी से कदम रखते हुए आगे बढ़ रहे थे कि अचानक दुश्मन की ओर से फायरिंग शुरू हो गई। सभी जवानों ने सतर्कता बरतते हुए क्रॉस फायरिंग शुरू की। भारतीय सैनिकों को हावी होता देखकर ऊंचाई का फायदा उठाते हुए दुश्मन ने कंपनी के ऊपर ग्रेनेड से हमला कर दिया।
ग्रेनेड के फटने से हरिपाल सिंह समेत पांच जवान घायल हो गए, उनमें दो जवान शहीद भी हुए। हरिपाल सिंह व उनके साथियों ने घायल अवस्था में दुश्मन पर फायरिंग शुरू की और दो पाकिस्तानी घुसपैठियों को ढेर किया। अन्य को खदेड़कर घायल अवस्था में ही हरिपाल ने तिरंगा फहराकर घायल साथियों के साथ ”भारत माता की जय” का नारा लगाया। कारगिल युद्ध के दौरान की ये बातें युद्ध में घायल हुए हरपाल सिंह ने आपरेशन विजय की 23वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर विशेष बातचीत में बताईं।
हरिपाल ने बताया कि 1999 में लड़ाई शुरू हाेने से कुछ समय पहले वे फिरोजपुर में तैनात थे। लड़ाई शुरू होने के बाद उनकी पेरेंटिंग यूनिट से राष्ट्रीय राइफल्स की वेकेंसी आई, जिसके बाद उनकी यूनिट की ओर से हरिपाल समेत चार अन्य जवानों को राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात किया गया। जहां उनको बारामूला में रिपोर्ट करना था। इसके बाद यूनिट के मूवमेंट के साथ ही वे द्रास सेक्टर पहुंचे। द्रास सेक्टर पहुंचने के रास्ते में ही भारी बमबारी से दिल घबरा रहा था, जबकि अपने साथी जवानों के शहीद क्षत-विक्षत शव देखकर खून भी खौल रहा था।
गांव पल्था, तहसील आवंला, बरेली के निवासी हरिपाल सिंह का जन्म 15 मार्च 1975 को हुआ। उनके पिता बेनीराम यादव कृषक थे। माता हरदेवी गृहिणी थी। बचपन से ही उनको देश सेवा का जुनून था, इसलिए उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद 1996 में फौज की शारीरिक दक्षता परीक्षा दी, जिसके बाद वे फौज की फील्ड रेजिमेंट में भर्ती हो गए। मार्च 1997 में लद्दाख स्थित निंबू शहर में पहली पोस्टिंग मिली। भर्ती होने के तीन साल बाद 1999 में ऑपरेशन विजय शुरू हुआ।
गुमरी में बनाया गया था अस्थाई मिलिट्री हॉस्पिटल
ग्रेनेड से घायल होने के बाद बेहोशी हालत में उन्हें हेलीकॉप्टर के माध्यम से एयरलिफ्ट किया गया। हरपाल सिंह ने बताया कि युद्ध के समय फर्स्ट एड के लिए जम्मू कश्मीर के गुमरी गांव में अस्थाई हॉस्पिटल बनाया गया था। जहां प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें श्रीनगर बेस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वहां उपचार के बाद उन्हें दिल्ली व बरेली मिलिट्री हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। उन्होंने बताया कि श्रीनगर बेस हॉस्पिटल में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाल्डिज, सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक समेत अन्य अधिकारियों ने उनकी वीरता की सराहना की थी।
बेटी रजनी को भी पिता पर गर्व, सेना में जाने की कर रही तैयारी
बेटी रजनी ने पिता हरिपाल के बारे में बातचीत करते हुए बताया कि पिता के शरीर पर 23 साल बाद भी निशान देखकर रूह कांप जाती है। उनके देशप्रेम के जज्बे को देखते हुए वे भी सेना में जाने की तैयारी कर रही हैं। हालांकि उन्होंने अभी 12वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी के अंकों से पूरी की है। हरिपाल की पत्नी सुखदा यादव ने बताया कि रेडियो पर युद्ध की खबर सुनकर उनका दिल सहम गया। जब उनके घायल होने की खबर आई तो वे बेहोश सी हो गईं। जिसके बाद परिजनों के संभाला। वर्तमान में हरिपाल का तीन वर्ष का बेटा अमृतांश भी है।
फौज की वर्दी एक दिन मिले या चार साल, गर्व की बात
बीते समय नई भर्ती योजना अग्निपथ से युवाओं की ओर से सरकारी व निजी सम्पत्तियों की तोड़फोड़ पर हरिपाल ने बताया कि फौज की वर्दी एक दिन मिलना भी गर्व की बात है। युवाओं को आने वाले समय में फौजी दिनचर्या अनुशासित होने के साथ ही जीवन के हर पहलू पर काम आएगी।
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