लखीमपुर खीरी: पंचतत्व की प्रकृति में वापसी के लिए सक्रिय हुए फफूंद

लखीमपुर खीरी: पंचतत्व की प्रकृति में वापसी के लिए सक्रिय हुए फफूंद

बांकेगंज/लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। वर्षा ऋतु आते ही जगह-जगह पड़े कार्बनिक पदार्थों की साफ-सफाई और इन पदार्थों के निर्माण में उपयोग किये गए तत्वों को पुनः प्रकृति को देने के लिए प्रकृति के सफाई कर्मियों में से एक फफूंद उगने लगे हैं और अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुट गये हैं। पर्यावरणविद एवं वनस्पति विज्ञानी डॉ …

बांकेगंज/लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। वर्षा ऋतु आते ही जगह-जगह पड़े कार्बनिक पदार्थों की साफ-सफाई और इन पदार्थों के निर्माण में उपयोग किये गए तत्वों को पुनः प्रकृति को देने के लिए प्रकृति के सफाई कर्मियों में से एक फफूंद उगने लगे हैं और अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुट गये हैं। पर्यावरणविद एवं वनस्पति विज्ञानी डॉ राज किशोर कहते हैं कि प्रकृति की अधिकांश वस्तुएं जीव जंतु पंच तत्वों से मिलकर बने होते हैं।

इन्हें कार्बनिक पदार्थ भी कहा जाता है जो समय समय पर नष्ट होती रहती हैं। पंच तत्वों से बने इन कार्बनिक पदार्थों के नष्ट होने पर पंच तत्वों की वापसी के लिए प्रकृति ने सफाईकर्मी की व्यवस्था कर रखी है। इन सफाईकर्मियों फफूंद के बीज आंद्रता के बढ़ने पर विशेषकर वर्षा ऋतु के प्रारंभ होते ही वातावरण में फैलने लगते हैं और कार्बनिक पदार्थों को सड़ा गला कर पंच तत्वों को पुनः प्रकृति में भेज देते हैं।

उन्होंने कहा कि प्रकृति के ये सफाईकर्मी न होते तो यह धरती सड़ी गली वस्तुओं मृत जीव जंतुओं से भरी रहती और वातावरण दूषित हो जाता। उन्होंने बताया कि फफूंद  या कवक एक प्रकार के जीव हैं जो अपना भोजन सड़े गले मृत  कार्बनिक पदार्थों  से प्राप्त करते हैं। इनके शरीर के  ऊतकों  में कोई भेदकरण नहीं होता।

दूसरे शब्दों में, इनमें जड़, तना और पत्तियां नहीं होतीं तथा इनमें अधिक प्रगतिशील पौधों की भाँति संवहनीयतंत्र नहीं होते। विश्व का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां ये उत्पन्न न हो सकते हो। यहां तक कि खौलते पानी में भी उत्पन्न हो सकते हैं, वायु तथा अन्य जीवों के शरीर के भीतर या उनके ऊपर भी उत्पन्न हो जाते हैं।  इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है।

फंगस लाभदायक होते हैं तो हानिकारक भी
उन्होंने बताया कि इनमें से कई फंगस लाभदायक होते हैं और कई हानिकारक भी।फफूंदी या कवक तीन प्रकार के होते हैं ,मृतोपजीवी  कवक , परजीवी कवक, सहजीवी कवक। मृतोपजीवी कवक अपना भोजन सदैव सड़े वाले पदार्थों से प्राप्त करते हैं इनमें राइजोपस, पेनिसिलीयम, मरसेला जैसे कवक हैं। परजीवी कवक अपना भोजन पौधे या जंतुओं के जीवित ऊतकों से प्राप्त करते हैं इस प्रकार के कवक हानिकारक होते हैं जैसे पकसनिया, ऑस्टिलगो।

डॉ राज किशोर

सहजीवी कवक एक दूसरे के साथ उगते हैं और लाभ पहुंचाते हैं जैसे लाइकेन। हानिकारक कवक जीवित व्यक्तियों और जंतुओं में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर उनके लिए समस्याएं बढ़ा देते हैं ब्लैक फंगस,यलो फंगस, रेड फंगस और ग्रीन फंगस इन्हीं के उदाहरण है जो कोरोना महामारी के बाद समस्या बने हुए हैं। इन हानिकारक कवकों के कारण ही गंजापन, दाद, खाज दमा जैसी बीमारियां भी फैलती हैं।

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