आधे स्टाफ पर पूरी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का जिम्मा

संजय सिंह, अमृत विचार, नई दिल्ली। देश के प्रमुख सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों में स्टाफ की भारी कमी के कारण ऐतिहासिक धरोहरों का समुचित संरक्षण नहीं हो पा रहा है। संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध ये प्रतिष्ठान सिर्फ आधे कर्मचारियों से काम चला रहे हैं। इसके बावजूद मंत्रालय का बजट दिनोदिन कम होता जा रहा है। दिल्ली, मुंबई …
संजय सिंह, अमृत विचार, नई दिल्ली। देश के प्रमुख सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों में स्टाफ की भारी कमी के कारण ऐतिहासिक धरोहरों का समुचित संरक्षण नहीं हो पा रहा है। संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध ये प्रतिष्ठान सिर्फ आधे कर्मचारियों से काम चला रहे हैं। इसके बावजूद मंत्रालय का बजट दिनोदिन कम होता जा रहा है।
दिल्ली, मुंबई और कोलकाता स्थित राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालयों के अलावा दिल्ली में ही स्थित ललित कला अकादमी एवं संगीत नाटक अकादमी में मात्र 50 फीसद स्टाफ से काम कर रहा है। इसी तरह नेशनल रिसर्च लैबोरेटरी फ़ॉर कंजर्वेशन ऑफ आर्ट एंड कल्चर (एनआरएलसी), सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एन्ड ट्रेनिंग और नेशनल मिशन फ़ॉर मैन्युस्क्रिप्ट्स का काम भी आधे कर्मचारियों के भरोसे है।
अकेले आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में ग्रुप ए, बी और सी के 2945 पद खाली पड़े हैं। जिनमें भर्तियों का फिलहाल कोई अता-पता नहीं है। हालांकि एएसआइ में कर्मचारियों की जरूरत का 2010-11 में अध्ययन कराया गया था। जबकि 2013 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के ऑडिट में भी इसका आकलन किया गया था। और तो और दो साल पहले नीति आयोग के माध्यम से भी एएसआइ के लिए स्टाफ की आवश्यकता का विस्तृत प्रस्ताव भी सरकार को पेश किया जा चुका है। लेकिन बजट की कमी के कारण कोई परिणाम सामने नहीं आया है।
अभी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में सिर्फ 5,481 कर्मचारी हैं। जबकि जरूरत और स्वीकृति 8,426 कर्मचारियों की है। इस तरह 2,945 कर्मचारी कम हैं। नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया में 454 की जगह महज 228 कर्मचारी हैं यानी 226 की कमी है। नेशनल लाइब्रेरी, कोलकाता में 159 कर्मचारी कम हैं। यहां 451 के स्टाफ के बजाय 292 से कम चलाया जा रहा है। इसी तरह राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में 144 की जगह 57 कर्मी होने से 87 कर्मियों की कमी है।
सेंट्रल रिफरेंस लाइब्रेरी में 63 की जगह 41, एनआरएलसी में 103 कई जगह 41, सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्स एन्ड ट्रेनिंग में 106 की जगह 46 और राष्ट्रीय नाट्य अकादमी में 176 की जगह सिर्फ 93, संगीत नाटक अकादमी में 111 की जगह 50, साहित्य अकादमी में 175 की जगह 137, ललित कला अकादमी में 152 की जगह 69 जबकि नेशनल मिशन फ़ॉर मन्युस्क्रिप्ट्स में 51 की जगह पर केवल 24 लोग काम कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी नेशनल ओपेन यूनिवर्सिटी, विक्टोरिया मेमोरियल हॉल, नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूजियम्स, इंडियन म्यूजियम, इलाहाबाद म्यूजियम, नेशनल म्यूजियम इंस्टिट्यूट, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, राजा राममोहन राय लाइब्रेरी, सेंट्रल सेक्रेट्रिएट लाइब्रेरी, एशियाटिक सोसाइटी, गांधी स्मृति दर्शन, नव नालंदा महाविहार, सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज में कर्मचारियों का टोटा है।
उत्तर प्रदेश में भी कर्मियों के कमी से जूझ रहे प्रतिष्ठान
उत्तर प्रदेश में सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ तिबतन स्टडीज, वाराणसी तथा रामपुर राजा लाइब्रेरी, रामपुर भी स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं। संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध इन तमाम संगठनों के जिम्मे महत्वपूर्ण स्मारकों, पुरालेखों, लिपियों, ग्रंथों तथा अवशेषों के संरक्षण एवं संवर्धन की जिम्मेदारी है। कार्य के लिहाज से इनमें एएसआइ सबसे बड़ा संगठन है। जिसके ऊपर ताजमहल समेत राष्ट्रीय महत्व वाले 3692 केंद्र संरक्षित स्मारकों के अलावा 38 विश्व विरासतों तथा 50 म्यूजियमों के रखरखाव का दायित्व है। लेकिन संस्कृति मंत्रालय का बजट ही इतना कम है कि वो किसी संगठन के साथ न्याय करने की स्थिति में नहीं है।
वर्ष 2021-22 में मंत्रालय को मात्र 2688 करोड़ का बजट मिला जो केंद्र के कुल बजट का मात्र 0.0087 फीसद है। इसमें एएसआइ के हिस्से 1043 करोड़ आए हैं। इस राशि से सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण की कल्पना करना भी कठिन है।