मुरादाबाद के लोगों को भाती है वृंदावन की होली!

मुरादाबाद, अमृत विचार। ब्रज की होली का नाम सुनते ही मन अलग सी उमंग से भर जाता है। वहां की लठमार होली एवं फूलों की होली के दृश्य हमारी आंखों के आगे तैरने लगते हैं। हर कोई इन अद्भुत दृश्यों के दर्शन को लालायित हो उठता है। इसी चाहत को पूरा करने हर साल महानगर …
मुरादाबाद, अमृत विचार। ब्रज की होली का नाम सुनते ही मन अलग सी उमंग से भर जाता है। वहां की लठमार होली एवं फूलों की होली के दृश्य हमारी आंखों के आगे तैरने लगते हैं। हर कोई इन अद्भुत दृश्यों के दर्शन को लालायित हो उठता है। इसी चाहत को पूरा करने हर साल महानगर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु वृंदावन धाम को प्रस्थान करते हैं। मुरादाबाद के लोगों को वृंदावन की होली का बेसब्री से इंतजार रहता है।
इस्कॉन संस्था से जुड़े उपदेशक महामुनि प्रभु बताते हैं कि वृंदावन की होली विश्व विख्यात है। वसंत पंचमी से ही वहां यह पर्व आरंभ हो जाता है। यहां के हर मंदिर और गांव में 40 दिनों तक उत्सव चलता है। इस त्योहार को गोकुल, वृंदावन और मथुरा में धूमधाम से मनाया जाता है। यहां रंग वाली होली से पहले लड्डू, फूल और छड़ी वाली होली भी मनाई जाती है। उन्होंने बताया कि बरसाना में होली से एक हफ्ते पहले उत्सव शुरू होता है। परंपरा के अनुसार, इस दिन नंदगांव के पुरुष बरसाना आकर राधा रानी मंदिर पर ध्वजा फहराने का प्रयास करते हैं। इसी समय महिलायें एकजुट होती हैं और उन्हें लट्ठ से मारने का प्रयास करती हैं। इस बीच पुरुष, महिलाओं पर गुलाल छिड़क कर उनका ध्यान बांट ध्वजा फहराने का प्रयास करते हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में लट्ठमार होली मनाई जाती है।
बहुत लुभाती है फूलों की होली
होलिका दहन के दिन वृंदावन में फूलों वाली होली मनाई जाती है। इसके लिए श्रद्धेय बांके बिहारी मंदिर के द्वार खोले जाते हैं और लोगों को उनके दर्शन का मौका दिया जाता है। होली के दिन, बांके बिहारी मंदिर में भव्य उत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। श्री बांकेबिहारी मंदिर में रंग की होली रंगभरनी एकादशी से शुरू होती है।
मथुरा की होली
महामुनि प्रभु के अनुसार वृंदावन में उत्सव समाप्त होने के बाद मथुरा में शुरू होता है। वहां श्री द्वारिकाधीश मंदिर में कई तरह के रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों से होली मनाई जाती है। मंदिर में भव्य समारोह आयोजित होते हैं। होली के एक दिन बाद श्रद्धालु शहर के बाहर दाऊजी मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ते हैं। इस दौरान महिलायें पुरुषों के कपड़े फाड़ देती हैं और उन्हें अपने फटे-पुराने परिधानों से पीटती हैं।
बोले लोग
अंकुश ने कहा कि मैं पिछले 15 वर्षों से बरसाना की होली देखने जाता हूं। वहां का वातावरण मन को भा जाता है। वहां पर होली सात दिन पहले प्रारंभ हो जाती है। यहां हर दिन अलग-अलग तरीके से पर्व मनाया जाता है।
निहाल वर्मा ने कहा कि बरसाना में होली के दिन अलग ही रौनक दिखाई देती है। सारा वातावरण राधा-कृष्ण के रंगों में डूबा नजर आता है। हमारे यहां से बहुत लोगों का दल हर साल उस अद्भुत दर्शन के लिए जाता है।