अष्टादशभुजा महालक्ष्मी मंदिर में होती है भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तर भारत का एकमात्र अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर हल्दूचौड़ के बेरीपड़ाव में स्थित है। मंदिर में 18 भुजाओं वाली मां महालक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है। लोगों में इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां पूजा-अर्चना करता है, अष्टादश महालक्ष्मी माता उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उसके पास कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
नवरात्रि पर यहां मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। कुमाऊं मंडल में मां लक्ष्मी के सभी नौ रूपों का एकमात्र अष्टादशभुजा महालक्ष्मी मंदिर बेरीपड़ाव में स्थित है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा अर्चना कर रहे हैं। महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति महाराज ने बताया कि हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है यह पर्व मां की उपासना और नारी शक्ति को संकल्पित रखने का समय है। नवरात्र के साथ-साथ दीपावली व अन्य शुभ अवसरों पर काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं।
नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी 9 रूपों के स्वरूपों की कथा का विस्तारपूर्वक संगीतमय वर्णन करने के लिए श्रीमद्देवी भागवत कथा महापुराण का आयोजन किया जाता है। जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है।
2004 में भूमि पूजन और मंदिर की नींव
यह मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है, मंदिर बहुत सुंदर और अद्भुत है। कई भक्त यहां आते हैं और देवी महालक्ष्मी का आशीर्वाद लेते हैं। अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मन्दिर की स्थापना तपस्वती सन्त एवं महामण्डलेश्वर श्री-श्री 1008 बालकृष्ण यति महाराज द्वारा कराई गयी थी। इसलिए इसे बालकृष्ण यतिधाम भी कहा जाता है। वर्ष 2004 में भूमि पूजन के साथ ही इस मंदिर की नींव पड़ गयी थी। लेकिन मंदिर एवं आश्रम परिसर का निर्माण 2005-2006 में किया गया। 20 अप्रैल 2007 को अष्टादश भुजा महालक्ष्मी देवी की मूर्ति स्थापना के साथ ही प्राण प्रतिष्ठा की गई। यह शहर के सबसे बड़े और सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है। मंदिर सफेद रंग के तीन मुख्य गुंबदों के साथ एक बहुत बड़ी संरचना है। इसमें विभिन्न सम्मानित देवताओं के मंदिर भी हैं- "भगवान शिव", "भगवान गणेश" और " भगवान हनुमान", मंदिर हर धर्म और जाति के भक्तों को आकर्षित करता है।