Chaitra Navratri 2025; इस दिन से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र, ऐसे करें मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी जी की पूजा

Chaitra Navratri 2025; इस दिन से शुरू हो रहे चैत्र नवरात्र, ऐसे करें मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी जी की पूजा

कानपुर, अमृत विचार। हमें अपने हिंदू वैदिक नववर्ष को ही वैदिक रीति से मनाना चाहिए जिसके पीछे पूर्ण वैज्ञानिकता छिपी हुई है। भारतीय पर्व परंपरा में नवसंवत्सरोत्सव का विशेष महत्व है। ज्योतिष के 'हिमाद्रि ग्रंथ' में यह श्लोक आया है- 

चैत्र मासे जगद ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेअहानि। 
शुक्ल पक्षे समग्रंतु, तदा सूर्योदये सति।। 
चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने जगत की रचना की।

संस्थापक अध्यक्ष ज्योतिष सेवा संस्थान के आचार्य पवन तिवारी ने बताया कि भास्कराचार्य कृत 'सिद्घांत शिरोमणि' का यह श्लोक-लंकानगर्यामुदयाच्च भानोस्त स्यैव वारे प्रथमं बभूव। 

मधे: सितादेर्दिन मास वर्ष युगादिकानां युगपत्प्रवृत्ति:।।  लंका नगरी में सूर्य के उदय होने पर उसी के वार अर्थात् आदित्य रविवार में चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रारंभ में दिन मास वर्ष युग आदि एक साथ प्रारंभ हुए।

चैत्रशुदि प्रतिपदा सृष्टि का प्रारंभ, भगवान का मत्स्यावतार दिवस

ब्रह्म पुराण में ऐसा प्रमाण मिलता है कि 'ब्रह्माजी ने इसी तिथि को (सूर्योदय के समय) सृष्टि की रचना की थी।'  स्मृति कौसतुभकार के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'निष्कुंभ योग' में भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। आर्यों के सृष्टि संवत, वैवस्वतादि संवंतरारंभ, सतयुगादि युगारंभ, विक्रमी संवत, कलिसंवत:, चैत्रशुदि प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं।  इस दिन से ही पूरे वर्ष भर के अनुष्ठानों, पर्वों आदि के शुभ मुहूर्त तय किए जाते हैं।

Pavan Tiwari (1)

मधुमास के पुष्प प्रकृति की ख़ुशहाली के संकेत हैं

चैत्र के मास में ही वसंत ऋतु में सर्वत्र पुष्प खिले होते हैं। इन पुष्पों का खिलना नवसंवत्सरारंभ की मानो सूचना है। पुष्पों का खिलना सृष्टि के महायज्ञ के प्रारंभ होने का संदेशवाहक है। 

वैज्ञानिक आधर पर यह पर्व

इस समय मानव मन स्वयं ही हर्षित और उल्लसित हो नवीनता एवं नूतनता का हर्ष विभोर के साथ स्वागत कर कह उठता है- "स्वागत है, स्वागत है नये वर्ष का। समय है उल्लास और हर्ष का, काल के अनंत पट पर, युग सरिता के तट पर, मन्वंतर के घट पर, नव संदेश देता है नवसंवत्सर, अपकर्ष का नहीं मानव के उत्कर्ष का। स्वागत है, स्वागत है नये वर्ष का।"

भारत में विक्रमी संवत महाराजा विक्रमादित्य के राज्याभिषेक की तिथि है। उनका अपनी प्रजा के प्रति प्रेम और न्यायपूर्ण व्यवहार स्मरण करने का दिवस है।  विक्रम संवंत् सबसे अधिक प्रासंगिक, सार्वभौमिक और वैज्ञानिक कैलेंडर है। यह सौर्य और चंद्रमा की गणना पर आधारित है।  हिंदू पंचांग की गणना के आधार पर यह हजारों साल पहले बता दिया था कि अमुक दिन, अमुक समय पर सूर्यग्रहण होगा।  यह प्रमाणित हुआ है कि युगों बाद भी यह गणना सही और सटीक साबित हो रही है।

नवरात्रि में करते हैं माँ दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी जी की पूजा

नवरात्रि के पहले तीन दिन, हम सुरक्षा देवी दुर्गा की असीम ऊर्जा और अपार शक्तियों की पूजा करते हैं।  अगले तीन दिन धन वैभव की देवी लक्ष्मी जी को। अंतिम तीन दिन ज्ञान विद्या बुद्धि की देवी सरस्वती जी को समर्पित किये जाते हैं। कुछ मान्यताओं में ५ वें और ७ वें दिन देवी सरस्वती की; ४ थे और ६ वें दिन देवी लक्ष्मी जी की; आठवें दिन देवी महागौरी और नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। सामान्यतः नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों- क्रमशः माँ शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की विशेष पूजाएँ की जाती हैं।

शरीर के भीतर मौजूद ऊर्जा केंद्रों (शक्ति चक्रों) को जागृत करें

देवी दुर्गा के विभिन्न रूप हमारे शरीर के अंदर स्थित विभिन्न शक्ति-चक्रों से संबंधित हैं। इन ऊर्जा केंद्रों को इन नौ दिनों में जागृत किया जाता है। अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करके और अपनी ऊर्जा का सही उपयोग किया जा सकता है। 
प्रकृति की शक्तिदेवी माँ के रूप में पूजा की जाती है।
प्रथम तीन दिन क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर चक्रों पर ध्यान
प्रथम दिवस- मूलाधार में ध्यान कर माँ शैलपुत्री के स्वरूप का ध्यान कर इनके इस मंत्र को जपते हैं। 
बीज मंत्र- "ह्रीं शिवायै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'
द्वतीय दिवस- माँ ब्रह्मचारिणी संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति दायिका हैं।  स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है।
बीज मंत्र- "ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'
 तृतीय दिवस- माँ चंद्रघंटा कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्रदायिनी देवी हैं। मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। 
बीज मंत्र- "ऐं श्रीं शक्तयै नम: ।। 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'
४, ५, ६ दिनों में क्रमशः अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा चक्रों पर ध्यान
चतुर्थ दिवस- माँ कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। ये रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं। अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। 
बीज मंत्र- "ऐं ह्री देव्यै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'
पंचम दिवस- मां स्कंदमाता पूजन, विशुद्ध चक्र में ध्यान साधना। ये सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं। 
बीज मंत्र- "ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'
छठा दिवस- मां कात्यायनी पूजा, आज्ञा चक्र ध्यान। मां कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है जो साहस का प्रतीक हैं। शेर पर सवार उनकी चार भुजाएं हैं। ये भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति दिलाती
बीज मंत्र- "क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'
सातवें और आठवें दिन आज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित करें
सातवाँ दिवस- उग्र रूप धारी मां कालरात्रि पूजा, आज्ञा चक्र (ललाट) ध्यान। पौराणिक कथा के अनुसार जब मां पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों का वध किया था, तब उनका रंग काला हो गया था।  मां काली शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं। आज्ञा चक्र (ललाट) पर ध्यान किया जाता है। 
बीज मंत्र- "क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: ।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।' 
आठवां दिवस- –मां महागौरी दुर्गा पूजा, आज्ञा चक्र (मस्तिष्क) ध्यान। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होने के साथ साथ असंभव से असंभव कार्य भी पूर्ण होते हैं। मस्तिष्क में ध्यान कर इनके इस मंत्र को जपा जाता है।
बीज मंत्र- "श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'
नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना और सहस्त्रार चक्र ध्यान करें
नौवाँ दिवस- आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना और सहस्त्रार चक्र ध्यान। सच्चे मन से माँ की पूजा आराधना करने वाले को हर प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। सहस्त्रार चक्र (मध्य कपाल) में इनका ध्यान किया जाता है। 
बीज मंत्र- "ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।।" 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'

लक्ष्मी देवी शक्ति के आठ रूपों की हम पर बौछार हो

आदि लक्ष्मी - यह रूप आपके मूल स्रोत का स्मरण कराती है। जब हम भूल जाते हैं कि हम इस ब्रह्मांड का हिस्सा है, तो हम खुद को छोटे और असुरक्षित मानते हैं। आदि लक्ष्मी यह रूप आपको अपने मूल स्रोत से जोड़ता है, जिससे अपने मन में सामर्थ्य और शांति का उदय होता है। 
धन लक्ष्मी - यह भौतिक समृद्धि का एक रूप है।  
विद्या लक्ष्मी - यह ज्ञान, कला और कौशल का एक रूप है।  
धान्य लक्ष्मी - अन्न-धान्य के रूप यह रूप प्रकट होता है।
नवरात्रि के तीन दिन (४, ५, ६) देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं
संतान लक्ष्मी - यह रूप प्रजनन क्षमता और सृजनात्मकता के रूप में प्रकट होता है । जो लोग रचनात्मक और कलात्मक होते हैं, उनपर लक्ष्मी के ये रूप की कृपा होती है। 
धैर्य लक्ष्मी - शौर्य और निर्भयता के रूप में प्रकट होती है।  विजय लक्ष्मी - जय, विजय के रूप में प्रकट होती है।  भाग्य लक्ष्मी - सौभाग्य और समृद्धि के रूप में प्रकट होती है। 
 इन विभिन्न रूपों में देवी लक्ष्मी हम सब पर प्रसन्न हों, संपत्ति और समृद्धि की बौछार करें।
नवरात्रि के ७, ८ और ९ वें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित
देवी सरस्वती हमें 'आत्मज्ञान' देती हैं। देवी सरस्वती हमारी अपनी चेतना का स्वरुप है, जो विभिन्न बाते सीखने को उद्युक्त करती है।  यह अज्ञान दूर करनेवाली ज्ञान और आध्यात्मिक प्रकाश का स्रोत है।  सरस्वती जी का वाहन 'विवेक का प्रतीक' हंस, तंतु वाद्य वीणा से निकलती मधुर ध्वनि मन को शांति देने वाली है, देवी का आसन पाषाण है जिसकी तरह अचल और निश्चल हमारा ज्ञान हो। 

नव दुर्गा के स्वरूप-महत्व 

शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना। 
ब्रह्मचारिणी - जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं। 
 
चन्द्रघण्टा - भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।  
कूष्मांडा - अर्थात अंडे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।

सुख-शांति व मोक्ष दायिनी, कफ रोग-नाशक देवी स्कंदमाता पांचवां स्वरूप हैं। कंठ रोग- शमन,भय, रोग, शोक-संतापों से मुक्ति दायिनी देवी कात्यायनी पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। आज्ञा चक्र स्वामिनी, भय, रोग, शोक, मस्तिष्क विकार-नाशक कालरात्रि देवी भगवती का सातवां रूप, जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।  भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।

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