इटावा सफारी पार्क के विशेषज्ञों को मिली बड़ी कामयाबी, शेरों में माइक्रोबियल रजिस्टेंस का बनाया प्रोटोकाल

इटावा सफारी पार्क के विशेषज्ञों को मिली बड़ी कामयाबी, शेरों में माइक्रोबियल रजिस्टेंस का बनाया प्रोटोकाल

इटावा, अमृत विचार। एशियाई शेरों के सबसे बड़े आशियाने, इटावा सफारी पार्क के बब्बर शेरों-शेरनियों में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस रोगाणुरोधी प्रतिरोध से लड़ने के लिए सफारी पार्क के विषेषज्ञों ने प्रोटोकॉल विकसित किया गया है। इसे सफारी की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। 

सफारी पार्क के निदेशक डॉ. अनिल कुमार पटेल ने बताया कि 6 शेरनियों और 3 शेरों के नमूनों की रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर पाया गया कि कई प्रचलित एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति इनके शरीर में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस है। इसके बावजूद कुछ एंटी बायोटिक दवाएं अब भी काम कर रही हैं। अब इस पर प्रोटोकॉल विकसित किया गया है। उन्होंने बताया कि अब इन दवाओं के विवेकपूर्ण इस्तेमाल से शेरों में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता आ जाएगी। 

उन्होंने बताया कि हाल ही में तमिलनाडू वेटरिनरी एण्ड एनिमल सांइस यूनीवर्सिटी के मद्रास वेटरिनरी कॉलेज, चेन्नई में अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बब्बर शेरों में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर शोध पत्र भी प्रस्तुत किया गया है। नये प्रोटोकॉल के तहत एंटीबायोटिक प्रयोग करने पर बब्बर शेरों एवं तेन्दुओं में अत्यन्त उत्साहजनक परिणाम प्राप्त होना इस बात का संकेत है कि दी जाने वाली एंटीबायोटिक का उन पर समुचित असर हो रहा है।

तेंदुओं में भी है रजिस्टेंस

कुछ माह पूर्व रेस्क्यू किये गये एक तेन्दुए को लाने के तुरन्त बाद जांच में भी ज्यादातर एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंस पाया गया था। इससे यह पता चला कि कहीं न कहीं से उसके शिकार द्वारा भी एंटीबायोटिक तेन्दुए के शरीर में प्रवेश कर रही थी। नये प्रोटोकॉल के तहत तेन्दुआ का उपचार किये जाने से तेन्दुआ अब लगभग स्वस्थ हो चुका है। इस सम्बन्ध में भी सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौधोगिकी विश्वविद्यालय के पशुचिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय, मेरठ में आयोजित सेमिनार में विशेषकर तेन्दुआ पर एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस का शोध पत्र भी प्रस्तुत किया गया है।

बोले डॉक्टर 

सफारी के डॉ रॉबिन और डॉ आरके सिंह ने बताया कि यहां वास कर रहे बब्बर शेरों एवं तेन्दुओं के स्वास्थ्य और संरक्षण के लिए पूरी तरह सजग हैं। इसके साथ ही साथ यहां वास कर रहे भालुओं एवं हिरणों के स्वास्थ्य पर भी नजर रखी जाती है तथा एंटीबॉयोटिक आदि दवाओं का प्रोटोकॉल के तहत जरूरत पड़ने पर इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस की संभावना नगण्य रहे एवं वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

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