Manmohan Singh Death: जब अमेरिका से परमाणु समझौते पर अड़ गए थे मनमोहन सिंह, दांव पर लगा दी सरकार
नई दिल्ली। वर्ष 2008 में अमेरिका के साथ भारत का ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता विदेश नीति के क्षेत्र में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल का गौरवशाली क्षण बना रहेगा। इस ऐतिहासिक समझौते ने न केवल देश के साथ परमाणु भेदभाव को समाप्त किया, बल्कि वैश्विक पटल पर एक अनुकूल भू-राजनीतिक संरचना का भी निर्माण किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस ऐतिहासिक समझौते के भविष्य के परिणामों के बारे में इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने इसे मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाया। हालांकि इस परमाणु समझौते को लेकर संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनकी सरकार का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ था।
असैन्य परमाणु समझौते ने अमेरिका के साथ भारत के समग्र संबंधों को बदल दिया। इसने विशेष रूप से भारत-अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा अनुसंधान के क्षेत्र में उच्च प्रौद्योगिकी और रक्षा के क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
जुलाई 2005 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ मनमोहन सिंह की वार्ता के बाद भारत और अमेरिका ने घोषणा की कि वे असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग करेंगे। अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को 19 जुलाई को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग की आवश्यकता पर विस्तार से प्रकाश डाला तथा परमाणु अप्रसार में भारत के बेदाग रिकॉर्ड के बारे में भी बताया था।
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