इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : 17 वीं शताब्दी में बने आगरा के हम्माम की सुरक्षा के लिए एएसआई और पुलिस आयुक्त को निर्देश
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17वीं शताब्दी में बने आगरा के हम्माम (सार्वजनिक स्नानघर) की सुरक्षा को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और आगरा के पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इमारत/स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे, साथ ही इमारत/स्मारक की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाए। मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2025 को सुनिश्चित की गई है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने चंद्रपाल सिंह राणा द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें विरासत भवन की सुरक्षा की मांग करते हुए यह दावा किया गया था कि इसे “अवैध और अनधिकृत व्यक्तियों” द्वारा ध्वस्त किए जाने का खतरा है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि तुर्की शैली में निर्मित हम्माम का निर्माण जहांगीर के शासनकाल में 1620 में अली वर्दी खान द्वारा कराया गया था और हाल ही में इस स्थल पर निजी संपत्ति होने का दावा कर कुछ लोगों ने इस ढांचे को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है।
कोर्ट के समक्ष याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत ऐतिहासिक इमारतों को किसी भी अनधिकृत क्षति से बचाना एएसआई का कर्तव्य है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि संबंधित अधिकारियों और स्थानीय पुलिस के समक्ष कई बार ज्ञापन देने के बावजूद इमारत की सुरक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है। मौजूदा याचिका में यह अनुरोध किया गया कि अगर इस संबंध में तत्काल सुरक्षात्मक आदेश पारित नहीं किए गए, तो इमारत को बुलडोजर और मशीनों की सहायता से पूरी तरह से ध्वस्त किया जा सकता है।
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