Prayagraj News : निराश्रित महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित मुकदमों को संवेदनशीलता से निर्णित करें परिवार न्यायालय

Prayagraj News :  निराश्रित महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित मुकदमों को संवेदनशीलता से निर्णित करें परिवार न्यायालय

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निराश्रित महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित मुकदमों को संवेदनशीलता के साथ निर्णित करने के संबंध में कहा कि परिवार न्यायालयों के न्यायाधीश ऐसे मामलों का निस्तारण करते समय अधिक जिम्मेदारी के साथ अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग करें। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी महिलाओं के मामलों को प्राथमिकता देनी चाहिए,जो अपने माता-पिता, ससुराल वालों या पति की सहायता के बिना अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि समाज में बुनियादी भरण-पोषण और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को न्याय में देरी न हो। यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकलपीठ ने सहारनपुर निवासी महिला की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची ने परिवार न्यायालय में अपने पति से भरण-पोषण के लिए वाद दाखिल किया था, जिस पर वर्ष 2019 में परिवार न्यायालय ने पत्नी को पांच हजार और उसके नाबालिग बच्चे को तीन हजार रुपये भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। भरण-पोषण भत्ते के आदेश के खिलाफ पति की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए 2023 में एकपक्षीय आदेश को रद्द कर दिया गया।

इसके खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने पाया कि परिवार न्यायालय में सुनवाई के दौरान लगातार उपस्थित होने के बावजूद याची का मुकदमा 6 वर्षों से लंबित चल रहा था, जिस पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने परिवार न्यायालय के न्यायाधीशों को संवेदनशील बनने का सुझाव दिया, साथ ही लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक को निर्देश दिया कि वह प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे न्यायिक अधिकारियों को न्यायिक अनुशासन और भरण- पोषण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में जागरूक बनायें।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में आवश्यक बिंदुओं की एक सूची तैयार की जानी चाहिए, जिसमें क्या करना है, इसकी स्पष्ट रूपरेखा भी शामिल हो और समय-समय पर परिवार न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच इस सूची को प्रसारित किया जाना चाहिए। अंत में कोर्ट ने भरण-पोषण के मामलों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन के संबंध में सहारनपुर के परिवार न्यायालय से रिपोर्ट मांगी। इसके अलावा संबंधित परिवार न्यायालय को इस आदेश से 3 सप्ताह के भीतर उचित दिशा- निर्देशों के आलोक में मौजूदा मामले को निस्तारित करने का निर्देश दिया।

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