प्रयागराज: 16वीं सदी में राजा टोडरमल ने कराई थी आदि गणेश की पुनर्स्थापना, यहां ब्रह्मा ने किया था सृष्टि का पहला यज्ञ
दशाश्वमेध घाट पर स्थापित हैं सृष्टि के प्रथम पूज्य आदि गणेश
महाकुम्भनगर/प्रयागराज, अमृत विचार। तीर्थराज प्रयागराज आस्था व आस्था की प्रचीनतम नगरियों में से एक हैं। यहां अति प्राचीन एवं विशिष्ट मान्यताओं के कई मंदिर विराजमान है। जिनका वर्णन वैदिक वांग्मय और पुराणों में भी दर्शाया गया है। उन्हीं मंदिरों में एक है दारागंज स्थित ऊंकार आदि गणेश भगवान का मंदिर। जिसे 16वीं यानि 1585 ईस्वी में राजा टोडरमल ने स्थापित कराया था। मंदिर में स्थापित गणेश विग्रह के प्राचीनता के विषय में सही ढंग से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन हां मंदिर का जीर्णोद्धार महाकुंभ-2025 को लेकर इस मंदिर का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है।
पौराणिक मान्यता की बात करें तो भगवान आदि गणेश ने सृष्टि के आने पर सबसे पहले प्रतिमा रूप में यहां गंगा तट को ही ग्रहण किया था। इस कारण ही इन्हें आदि गणेश कहा गया। यह भी कहा जाता है कि ऊंकार स्वंय यहां आदि गणेश रूप में मूर्तिमान होकर स्थापित हुए थे। यह सृष्टि के आदि व प्रथम गणेश है। मान्यता है इनके दर्शन और पूजन के बाद प्रारम्भ किया गया कार्य निर्विघ्न पूरा होता है।
पुराणो के मुताबिक तीर्थराज प्रयागराज को सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा की यज्ञ स्थली है। ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम यज्ञ प्रयागराज में ही किया था। जिसके कारण यह क्षेत्र प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। इसी क्षेत्र में गंगा तट पर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त रूप ओंकार ने आदि गणेश का मूर्ति रूप धारण किया था जिनके पूजन के बाद ब्रह्मा ने इस धरा पर दस अश्वमेध यज्ञ किये। यही कारण है कि यह गंगा तट दशाश्वमेध घाट कहा जाता है। भगवान गणेश के इस विग्रह को आदि ऊंकार गणेश कहा जाता है।
मंदिर के पुजारी सुधांशु अग्रवाल का कहना है कि कल्याण पत्रिका के गणेश अंक में वर्णन है कि आदि कल्प के प्रारंभ में ऊंकार ने मूर्तिमान होकर गणेश का रूप धारण किया। उनके प्रथम पूजन के बाद ही सृष्टि सृजन का कार्य प्रारंभ हुआ। उन्होंने बताया कि शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव ने भी त्रिपुरासुर के वध के पहले आदि गणेश का पूजन किया था। आदि गणेश रूप में भगवान गणेश के विध्नहर्ता और विनायक दोनों रूपों का पूजन होता है।
मंदिर के पुजारी सुधांशु अग्रवाल जी ने बताया कि मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा की प्राचीनता के विषय में स्पष्ट रूप से कुछ ज्ञात नहीं है। लेकिन, उनके पूर्वजों के दस्तावेज बताते हैं कि मंदिर का जीर्णोद्धार 1585 ईस्वी में अकबर के नवरत्न राजा टोडरमल ने करवाया था। जब 16वीं सदी में राजा टोडरमल, अकबर के महल का निर्माण करवा रहे थे। उसी कालखण्ड में उन्होंने आदि गणेश जी की मूर्ति की गंगा तट पुनर्स्थापना करवायी और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। आदि गणेश का पूजन विशेष रूप से माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन होता है। इनके पूजन के बाद प्रारंभ किया गया कोई भी कार्य निर्विघ्न पूर्ण होता है। श्रद्धालु दूर-दूर से मान्यता पूरी होने पर विशेष पूजन के लिए भी आते हैं। महाकुम्भ 2025 के आयोजन में सीएम योगी के मार्गदर्शन में आदि गणेश मंदिर को चित्रित और सौंदर्यीकृत करने का काम किया जा रहा है।
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