Kanpur: जीएसटी की बाधा, आटो पार्ट्स कारोबार रह गया आधा, कारोबारी बोले- टैक्स की पेचीदगी से हो चुके परेशान
कानपुर, अमृत विचार। ऑटो पार्ट्स के कारोबार से जड़े व्यापारी जीएसटी के मकड़जाल से खासे व्यथित और आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि जीएसटी की पेचीदगी ने कारोबार को पिछले कुछ वर्षो में आधा कर दिया है। उलझे हुए टैक्स स्लैब को ज्यादातर व्यापारी समझ नहीं पाते हैं और जो समझते हैं उन्हें खरीदार को समझाने में पसीने छूट जाते हैं।
जरा सी गड़बड़ी या देरी पर अधिकारी नोटिस के माध्यम से परेशान करते हैं। अमृत विचार गड़रियन पुरवा स्थित शहर के सबसे बड़े आटो पार्ट्स बाजार पहुंचा तो तमाम कारोबारियों ने तो यहां तक कह दिया कि हालात में सुधार नहीं होने पर व्यापार ही समेट लेने का चार बचा है। यहां की गुरुनानक ऑटो मार्केट एसोसिएशन ने एक सुर में जीएसटी के स्लैब कम करने की मांग उठाई।
बातचीत के दौरान गुरुनानक ऑटो मार्केट एसोसिएशन, गड़रियन पुरवा के अध्यक्ष अजीत सिंह भाटिया, महामंत्री गुरमीत सिंह, संगठन मंत्री हरप्रीत सिंह, गंगा राम शर्मा व इंद्रपाल सिंह लवली ने बताया कि जब जीएसटी लगा था तो सरकार ने ‘एक देश-एक टैक्स’ की बात कही थी।
आज व्यापारी पांच टैक्स स्लैब के बोझ तले दब गया है। इस दौरान परविंदर सिंह, अजय भाटिया, अटल भाटिया व कंवलजीत सिंह ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि ट्रैक्टर पर जीएसटी की दर 5 फीसदी जबकि उसके पार्ट्स पर 18 फीसदी है। पहले की टैक्स प्रणाली में इस तरह की विसंगति नहीं होती थी।
आज कारोबारी का सारा ध्यान टैक्स स्लैब की गणना करने में ही रहता है। कई बार तो खरीदार के साथ बिल बनने के बाद टैक्स को लेकर विवाद होता है। जीएसटी की दरों के साथ अन्य मुश्किलों के चलते हालात यह हैं कि किसी समय खरीदारों से भरी रहने वाली बाजार में अब अधिकतर समय सन्नाटा सा पसरा रहता है।
कार्यशाला लगाकर अफसर समझाएं टैक्स का गणित
व्यापारियों ने बताया कि जीएसटी की टैक्स प्रक्रिया उन लोगों को आज तक समझ में नहीं आई है। ऐसे में विभाग के अधिकारियों को आगे आकर उन्हें इस बारे में समझाने का प्रयास करना चाहिए। इससे व्यापारियों की दुश्वारी थोड़ी आसान होगी। इसके अलावा सरकार को भी व्यापारियों की गुहार सुननी चाहिए। जीएसटी स्लैब को सीमित करना चाहिए।
वाहनों के मॉडल तेजी से बदलने के कारण दिक्कत
कारोबारियों का कहना है कि बड़ी कंपनियां अपने वाहनों के मॉडल तेजी से बदलती या अपडेट करती रहती हैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा ऑटो पार्ट्स विक्रेताओं या निर्माताओं को उठाना पड़ता है। कारोबारी नए पार्ट्स ज्यादा नहीं बेच पाते हैं।
यदि पार्ट्स कम मंगाते हैं तो मुनाफे पर असर पड़ता है, अधिक मंगाते हैं तो स्टॉक खराब होने का खतरा रहता है। औसतन साल में कम से कम 10 फीसदी नया माल कबाड़ में बेचना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि बड़ी कंपनियों को कार, ट्रैक्टर,दो पहिया वाहनों में डिजाइन व अपडेट मॉडल की एक समय सीमा तय करे।
बड़ी कंपनियों की ऑनलाइन बिक्री नई मुसीबत
कारोबारियों ने बताया कि तमाम बड़ी कंपनियों ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए उत्पादों को बेचना शुरू कर दिया है। उत्पादों के ऑनलाइन रेट देखकर खरीदार उसी रेट पर माल मांगता है। ऐसे में उसे यह समझाने में परेशानी होती है कि बड़ी कंपनियां बल्क में माल बनाती हैं। इससे उन्हें यह सस्ता पड़ता है, जबकि वे लोग उत्पाद पर भाड़ा, टैक्स आदि जोड़कर माल बेचते हैं।