लखीमपुर खीरी: शिव क्षेत्र के प्राचीन 12 कोसीय परिक्रमा मार्ग के खोले जाने की मांग

लखीमपुर खीरी: शिव क्षेत्र के प्राचीन 12 कोसीय परिक्रमा मार्ग के खोले जाने की मांग

गोला गोकर्णनाथ, अमृत विचार। छोटी काशी स्थित महादेव मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भारतीय संस्कृति में गहराई से स्थापित है। 1877 के गजेटियर (वॉल्यूम 2) में इस मंदिर और उसके आसपास की परंपराओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। जिसमें महादेव मंदिर और उससे जुड़ी परंपराओं की विशेषताएं उल्लिखित हैं। 

महादेव मंदिर को एक विशाल पवित्र क्षेत्र को मुख्य केंद्र के रूप में माना जाता है। इस क्षेत्र की परिधि पर चार प्रमुख द्वार स्थित थे। पश्चिम में मोहम्मदी के निकट गोमती नदी के तट पर स्थित गजमोजननाथ, उत्तर में शाहपुर, परगना भूड में गदाईनाथ, पूरब में लखीमपुर के पास देवकलीनाथ और दक्षिण पश्चिम में परगना मोहम्मदी में बडखर। मंदिर तक पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को इन चार द्वारों से होकर गुजरने की परंपरा थी।

लाखों भक्त इन द्वारों से प्रवेश कर गोला पहुचते थे। फाल्गुन माह तथा सावन मास में शिव क्षेत्र की 12 कोसीय परिक्रमा कर मंदिर में पूजा अर्चना करते थे। मंदिर के चारों दिशाओं में चार छोटे मंदिर अर्थात उप तीर्थ स्थित थेरू, पूरब में भद्र कुंड, उत्तर में पनाहा (साल के जंगल में स्थित एक छोटा मंदिर), दक्षिण में किरनगर (जंगल में स्थित एक मंदिर) पश्चिम में अहमदनगर में मेन कुंड था। 

यह छोटे मंदिर मुख्य मंदिर के उपग्रह के रूप में कार्य करते थे और पूरे तीर्थ यात्रा के धार्मिक महत्व को बढ़ाते थे। महादेव मंदिर के चारों ओर लगभग दो कोस (तीन मील) की दूरी से बारह कोस की परिक्रमा की प्रथा थी। इस परिक्रमा को सक्रा विया कहा गया है और इसे श्रद्धालु अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए करते थे। छोटे पापों के लिए पैदल परिक्रमा की जाती थी, जबकि बड़े पापों के प्रायश्चित के लिए शरीर को जमीन पर मापते हुए परिक्रमा पूरी की जाती थी। इस प्रथा से जुड़ी मान्यता यह है कि परिक्रमा करने से पवित्रता और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती थी। देश भर के साधू सन्यासी यहां परिक्रमा करने आते थे।

1905 से पहले बंद हो गयी परिक्रमा
खीरी जिले का इतिहास लिख रही मानव अनुसंधान एवं विकास समिति के अध्यक्ष रविसुत शुक्ल ने बताया कि 1905 के गजेटियर में अंग्रेजों ने इस परिक्रमा मार्ग का उल्लेख नहीं किया। इससे पता चलता है कि रजवाड़ों का शासन समाप्त होते ही यह प्राचीन परम्परा भी धीरे धीरे समाप्त हो गई। आज़ादी मिलने के बाद भी गोला गोकर्णनाथ के शिव मंदिर क्षेत्र पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया और जिस गोला में 1905 में एक माह में छह लाख से अधिक भक्त ऐतिहासिक चैती मेला देखने और खरीददारी आते थे। चैती मेला भी धार्मिक महत्व का था, जिसमें मुख्य बिंदु शिव मंदिर की परिक्रमा करना शामिल था वह धीरे धीरे मनोरंजन केन्द्रित हो गया।

बंद परिक्रमा मार्ग खोले जाने की मांग
वर्तमान समय के कई बड़े गांव अहमदनगर, छितौनिया, धिरावां, घरथनिया, कोटवारा, भुड़वारा आदि परिक्रमा मार्ग पर स्थित थे। इन प्राचीन गांवों का ऐतिहासिक महत्व इस परिक्रमा मार्ग के कारण ही स्थापित हुआ प्रतीत होता है। समिति के अध्यक्ष रविसुत शुक्ल, महासचिव यतीश शुक्ला, उपाध्यक्ष श्रीकान्त तिवारी, कोषाध्यक्ष शिप्रा खरे ने शासन प्रशासन से इस ऐतिहासिक धार्मिक महत्व के परिक्रमा मार्ग को पुनः आरम्भ किये जाने की मांग की है।

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