"भोजपुरी इंडस्ट्री में सभी नचनिया और भजनिया हैं"- बोले एक्टर RC Pathak, देखें वीडियो
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लखनऊ, अमृत विचारः मिरजापुर-2, महरानी-2, रेड और कागज जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेरने वाले आरसी पाठक ने हिंदी सिनेमा में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली है। लोग इन्हें रेड और काजग मूवी के सीएम और हुमा कुरेशी के पापा के नाम से जानते हैं। यह एक ऐसे एक्टर जिनकी आवाज इतनी दमदार हैं की कई बार ये दूसरे एक्टर्स पर भी भारी पड़ जाते हैं। एक्टर, म्यूजिक कंपोजर, सिंगर और राइटर आरसी पाठक ने हिन्दी सिनेमा के साथ-साथ भोजपुरी सिनेमा में भी अपनी अलग पहचान बना ली है। बातों-बातों में आरसी पाठक ने बताया कि अमिताभ बच्चन और सौरभ शुक्ला ने मेरे कई सारे एड छीन लिए हैं। मैं ऑडीशन देने जाता था, लेकिन ज्यादा पॉपुलैरिटी की वजह से वे मुझे रिप्लेस कर देते थे। आइए आज आरसी पाठक नसे जुड़ी कई ऐसे अनकहे पहलुओं के बारे में उनकी ही जुबानी।
रमेश चन्द्र पाठक का जन्म गोरखपुर में हुआ था। ग्रेजुएशन करने के लिए कानपुर चले गए। पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद कर्मचारी राज बीमा में निगम में बाबु के तैर पर नौकरी शुरू कर दी। उन्होंने पूरे मन के साथ नौकरी की लेकिन कला और संस्कृति उनके खून में वाइरस की तरह घुस गई थी, जो लाख निकालने के बाद भी नहीं निकल रही थी। इसलिए वह जिधर भी गए यह कला उनके पीछे-पीछे चलती हुई दिखाई दी। ओरछा में फिल्म की शूटिंग खत्म कर वह लखनऊ पहुंचे तो कानपुर जाने से पहले अमृत विचार के दफ्तर आए।
आरसी पाठक ने अब तक कुल 52 फ़िल्में की है। उनके अभिनय पर पूरा बालीवुड फ़िदा है, लेकिन उन्होंने कभी कानपुर छोड़ने की बात नहीं सोची। उन्होंने कहा कि मुम्बई जाकर लोग काम तो कर सकते हैं, लेकिन कभी भी वहां रहने का नहीं सोच सकते हैं मुम्बई के कबूतरखाने नुमा घर होते हैं। उन्होंने कहा कि वह वहां जिन्दगी नहीं गुजार सकते।
उनके पिता फाग और चैती के शानदार कलाकार थे। अपनी कला के साथ वह बैंकाक गए और वहां उन्होंने खूब नाम कमाया। पिता की उंगली पकड़कर उन्होंने चलना भी सीखा और गाना भी सीखा। सरस्वती ने उन्हें लिखने और गाने की कला भी दे दी। थियेटर के साथ उन्हें बचपन से ही मोहब्बत हो गई। थियेटर में उन्होंने अपनी सारी कलाओं का भरपूर प्रदर्शन किया और लोगों के दिलों पर छा गए। उन्हें टेलीविजन ने ऑफर दिया तो उन्होंने सावधान इंडिया और तहकीकात के कई एपीसोड किये लेकिन वहां उन्हें आनंद नहीं आया।
फिल्म आंदोलन से किया डेब्यू
2005 में उन्हें फिल्म आन्दोलन में गांव के मुखिया का रोल मिला। इस रोल ने उन्हें भरपूर पहचान दी लेकिन उन्होंने यह बात हमेशा अपने जेहन में रखी कि थियेटर ही बालीवुड की जननी है। यही वजह है कि सामाजिक समस्याओं पर वह खुद नाटक लिखते हैं और उसमें अभिनय भी करते हैं। नयी पीढ़ी को पूरी शिद्दत के साथ सिखाते भी हैं। फिल्म कागज में उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई। यह फिल्म उस प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जिसमें एक जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है और वह पूरी जिन्दगी खुद को जिन्दा साबित करने में ही लगा रहता है। यह फिल्म लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर में शूट की गई। इस फिल्म में उनके साथ सतीश कौशिक भी थे। अभी हाल में उन्होंने ओरछा में फिल्म केजीएन शूट की है। इस फिल्म में वह हकीम सुलेमान की भूमिका निभा रहे हैं। वह बताते हैं कि हर साल 5 – 6 फ़िल्में करता हूं। मैं सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक खटने वाला नहीं हूं लेकिन जो करता हूं वह पूरे मन से करता हूं और समाज को कुछ देने की कोशिश करता हूं। मैं लेखन करता हूं, शायरी करता हूं, अभिनय करता हूं यह सिर्फ सरस्वती की कृपा है।