कासगंज: असहाय और लावारिस लोगों का आसरा बन अपना घर आश्रम

लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन जारी, अब तक 50 लोगों को किया रेस्क्यू

कासगंज: असहाय और लावारिस लोगों का आसरा बन अपना घर आश्रम

गंजडुंडवारा, अमृत विचार। लावारिस, असहाय लोगों को अब कागजों में नया ठिकाना और पहचान मिलना शुरू हो गई है। सोरों मे सिंघल धर्मशाला लहरा रोड स्थित अपना घर ऐसे लोगों को गले लगाकर उन्हें आसरा दे रहा है। आश्रम में सड़कों पर जिंदगी की सांसों को पूरा करने वाले ऐसे 33 लोग यहां आसरा पाए हुए हैं।

वैसे ऐसे लोगों का जीवन सुरक्षित कर पाना खासी चुनौती होती है। इसकी वजह यह है कि ऐसे लोग न तो अपने खान-पान का ख्याल रख पाते हैं और ना ही साफ-सफाई जैसी चीजों का इन्हें भान रहता है। गंदगी के बीच रहने के कारण ऐसे लोग संक्रमित हो जाते हैं। ऐसे में इनकी देखभाल सामान्य व्यक्ति से ज्यादा करनी होती है। मानव सेवा का जुनून पाले लखमीचन्द विशम्भर नाथ सिंघल भवन (अपना घर आश्रम) में ऐसे लोगों को ‘प्रभु मानकर सेवा में जुटा हुआ है। आश्रम का रेस्क्यू वाहन लगातार लोगों को यहां बेहतर देखरेख के लिए पहुंचा रहा है।

लगातार जारी रेस्क्यू अभियान
अपना घर आश्रम सोरों के प्रेसिडेंट सुनील कुमार ने बताया पीडित मानवता की सेवा ही हमारा ध्येय है। अपना घर में बेसहारा, आश्रयहीन एवं असहायों को प्रभुजी मानकर सेवा की जा रही है। सोरों मे अपना घर आश्रम विगत 30 अक्टूबर 2023 से जरूरतमंदो को सेवा दे रहा है। अब तक जनपद कासगंज सहित अन्य जिलों से 50 लोगों को रेस्क्यू कर सेवा को लाया जा चुका है। जिसमें से 17 लोगों द्वारा उनके आग्रह पर स्वस्थ कर बताए गए पते पर भेजा जा चुका है। बुधवार को अस्वस्थ, असहाय, बीमार, लावारिस प्रभु जी रामपाल एवं गुरुवार को महेश चन्द्र को गंजडुंडवारा कासगंज से रेस्क्यू कर अपना घर आश्रम, सोरोंजी में सेवा एवं पुनर्वास के लिए लाया गया। वर्तमान में 33 आश्रयहीनों को रख भोजन एवं चिकित्सा सहित सभी सुविधा दे सेवा की जा रही है।

ऐसे पड़ी आश्रम की नींव
अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के सहरोई गांव में हुआ। जब वह छठी कक्षा में थे तो उन्होंने अपने गांव के एक बुजुर्ग को बीमार और घायल अवस्था में तड़पते हुए देखा। उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं था, तभी से मन में मानव सेवा का बीज पनप गया। जब बड़े हुए तो डॉ. बीएम भारद्वाज बीएचएमएस की पढ़ाई करने के लिए भरतपुर आ गए। पढ़ाई पूरी होने के बाद प्रैक्टिस अच्छी खासी चलने लगी। बीएम भारद्वाज ने अपनी पत्नी डॉ. माधुरी को अपने मन की बात बताई तो वह भी उनके साथ मानव सेवा के लिए जुट गईं। उन्होने लावारिस, बीमार और घायल अवस्था में मिले व्यक्ति को घर लाकर वर्ष 1993 से वर्ष 2000 तक अपने घर पर ही सेवा की। जिसके बाद भरतपुर जिले के बझेरा गांव में एक बीघा जमीन खरीद कर उसमें अपना घर आश्रम की नींव रखी। जो कि धीरे धीरे 11 राज्यों में 59 अपना घर आश्रम तक पहुंच चुकी है।

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