उच्चतम न्यायालय का संदेश

उच्चतम न्यायालय का संदेश

उच्चतम न्यायालय ने हाल में चलन में आए ‘बुलडोजर न्याय’ पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए संपत्तियों को ध्वस्त करने के संबंध में बुधवार को दिशानिर्देश जारी किए और कहा कि कार्यपालक अधिकारी न्यायाधीश नहीं हो सकते। शीर्ष अदालत ने ‘बुलडोजर न्याय’ की तुलना अराजकता की स्थिति से की। गौरतलब है कि बुलडोजर न्याय देश में एक विवादास्पद प्रथा को संदर्भित करता है, जहां अधिकारी सांप्रदायिक दंगों, बलात्कारों और हत्याओं जैसे गंभीर अपराधों के आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर और भारी मशीनरी का उपयोग करते हैं। यह कार्रवाई अक्सर अचल संपत्तियों के विध्वंस के लिए प्रदान की गई समुचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना की जाती है।

बुलडोजर न्याय की प्रथा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में देखी गई है। आलोचकों के अनुसार बुलडोजर की कार्रवाई असंतुष्टों या हाशिए पर पड़े समूहों के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध का साधन बनाकर परेशान करने वाला बदलाव दर्शाती है। देश के कई हिस्सों में इस समय बुलडोजर न्याय का चलना कानून तथा संविधान के शासन के लिए चिंताजनक है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपराध के प्रति असहिष्णुता अब विध्वंस के बहाने के रूप में काम नहीं करेगी। देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद बुलडोजर न्याय की बढ़ती प्रवृत्ति पर कितना अंकुश लग पाएगा। बुलडोजर न्याय के पक्ष में  राज्य सरकार के अधिकारियों का दावा है कि अवैध निर्माण के मामलों में बुलडोजर से ध्वस्तीकरण मौजूदा नगरपालिका कानूनों और नियमों के अनुसार किया जाता है।

बुलडोजर कार्रवाई अवैध आपराधिक गतिविधियों को रोकने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। परंतु इस संबंध में देश की सबसे ऊंची अदालत ने इस सिद्धांत का एलान किया है कि किसी आरोपी तो क्या किसी दोष-सिद्ध अपराधी के भी घर को, समुचित कानूनी/न्यायिक प्रक्रिया के बिना नहीं गिराया जा सकता है।

देश में संपत्तियों को ढहाने के लिए दिशा निर्देश तय करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि संवैधानिक लोकाचार और मूल्य शक्ति के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते और इस तरह के दुस्साहस को अदालत द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के निर्णय से इस तरह के बुलडोजर न्याय पर सवाल तो उठेंगे ही। क्योंकि अपराध पर सख्त होने के लिए घरों को समतल करने की चाल को न्यायालय ने खारिज कर दिया है।

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