प्रयागराज न्यूज : आपराधिक दोषसिद्धि संभावित या अनुमानात्मक निष्कर्षों पर संभव नहीं
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2008 में झांसी के बबीना जिले में कथित दंगे और पुलिस कर्मियों पर हमले से जुड़े मामले में छह आरोपियों को बरी करने के आदेश को चुनौती देने वाली सरकारी अपील को खारिज करते हुए कहा कि अपराध को उचित आधार पर साबित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अस्पष्ट साक्ष्य दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने सरकार द्वारा दाखिल अपील को खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें सरकार द्वारा झांसी के अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा जारी किए गए आदेश को पलटने की मांग की गई थी। उपरोक्त आदेश में भोलू कुरैशी और पांच अन्य आरोपियों को विश्वसनीय साक्ष्यों की कमी के आधार पर दोषी न पाते हुए बरी कर दिया गया था। मामले के अनुसार 22 जुलाई 2008 को बबीना के सराफा बाजार क्षेत्र में पुलिस द्वारा निक्की नामक एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद बड़ी संख्या में भीड़ जमा हो गई और लोगों द्वारा उसे पीटा गया।
आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी में बताया गया कि भोलू कुरैशी और अन्य लोगों सहित भीड़ ने पुलिस के साथ दुर्व्यवहार और हाथापाई की, जिससे पुलिसकर्मियों को चोटें आईं और पुलिस ने पहचाने गए आरोपियों और कई अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, लेकिन व्यापक आरोपों के बावजूद ट्रायल कोर्ट ने सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया। इसके बाद वर्तमान अपील दाखिल की गई। कोर्ट के समक्ष मुद्दा था कि क्या ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का आकलन करने में गलती की है।
हालांकि तथ्यों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने पाया कि आपराधिक मामलों में साक्ष्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है और बिना ठोस आधार के बरी किए जाने के आदेश को पलटा नहीं जा सकता है। आपराधिक दोषसिद्धि संभावित या अनुमानात्मक निष्कर्षों पर आधारित नहीं हो सकती है। अंत में कोर्ट ने कहा कि न्यायिक जांच के तहत निचली अदालत का निर्णय और आदेश न्यायसंगत, उचित और कानूनी है, जिसमें यह कोर्ट किसी भी तरह का हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझती है।
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