हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर जताई नाराजगी, कहा- यौन उत्पीड़न के मामले FIR दर्ज करना जरूरी

हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर जताई नाराजगी, कहा- यौन उत्पीड़न के मामले FIR दर्ज करना जरूरी

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की गई अनुचित कार्यवाही पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित सीआरपीसी की धारा 156(3) की अर्जी पर विचार करते समय मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस को प्रारंभिक जांच के निर्देश देना और संभावित आरोपी के पक्ष में प्रस्तुत पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करना विधि सम्मत नहीं है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 154 के तहत यौन उत्पीड़न के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में कोई प्रारंभिक जांच आवश्यक नहीं होती है। हालांकि कुछ विशिष्ट मामलों में प्रारंभिक जांच की जा सकती है, जैसे- वैवाहिक विवाद और पारिवारिक विवाद, वाणिज्यिक अपराध, चिकित्सीय लापरवाही के मामलों में, भ्रष्टाचार या आपराधिक अभियोजन शुरू करने में असामान्य देरी करने के मामले में प्रारंभिक जांच स्वीकार्य है।

 उक्त आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकलपीठ ने एक पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हाथरस द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए पारित किया और मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया, जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित कानून के आलोक में पुनरीक्षणकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के बाद मामले पर नए सिरे से निर्णय लिया जा सके। 

पुनरीक्षणकर्ता का मामला है कि हाथरस जिले के एक प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने उसके साथ यौन उत्पीड़न तथा छेड़छाड़ करने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरुप उसका शीलभंग हुआ। चूंकि निकट के पुलिस स्टेशन में उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई, इसलिए उसने रजिस्टर्ड डाक से पुलिस को मामले की सूचना दी, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। अंत में उसने संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन किया।

 संबंधित मजिस्ट्रेट ने स्टेशन हाउस अधिकारी द्वारा दाखिल प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए इस टिप्पणी के साथ उसका आवेदन खारिज कर दिया कि यह आवेदन पुनरीक्षणकर्ता की अपने पति के साथ व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण प्रस्तुत किया गया है, साथ ही रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य के आधार पर कोई संज्ञेय अपराध भी नहीं बनता है। इस आदेश से व्यथित होकर पुनरीक्षणकर्ता ने वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। 

पुनरीक्षणकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि संज्ञेय अपराध होने के बावजूद संबंधित मजिस्ट्रेट ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें गवाहों का कोई बयान भी दर्ज नहीं किया गया था। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के विशिष्ट आरोपों की प्रारंभिक जांच के लिए पुलिस को निर्देशित करना और आरोपी के पक्ष में पुलिस रिपोर्ट पर भरोसा करना अवैध है।

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