Kanpur: दीवाली पर सिख मनाते हैं बंदी छोड़ दिवस, क्या है इससे जुड़ी कहानी? यहां पढ़ें...

Kanpur: दीवाली पर सिख मनाते हैं बंदी छोड़ दिवस, क्या है इससे जुड़ी कहानी? यहां पढ़ें...

विशेष संवाददाता, कानपुर। सिख धर्म के लिए भी दीवाली महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन गुरु हरगोबिंद सिंह की ग्वालियर से रिहाई हुई थी। दीवाली के दिन ही वह अमृतसर पहुंचे थे। सिख इसे बंदी छोड़ दिवस कहते हैं। हिंदू राम की अयोध्या वापसी पर यह त्योहार मनाते हैं। 

गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष हरविंदर सिंह लॉर्ड कहते हैं कि श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में स्पष्ट है कि भ्रम में न पड़िए। दीवाली बहिष्कार की तो बात ही नहीं है। वह बंदी छोड़ दिवस पर बताते हैं कि गुरु हरगोबिंद साहिब अमृतसर में श्रीअकाल तख्त साहिब का निर्माण कराने के साथ ही सेना मजबूत कर रहे थे। 

तभी लाहौर के नवाब मुर्तजा ने मुगल शासक जहांगीर को भ्रमित करने वाली सूचना भेजी और बताया कि गुरु हरगोबिंद जी अपने पिता की प्रताड़ना और हत्या का बदला लेने के लिए तैयारी कर रहे हैं। जहांगीर ने वजीर खान और गुंचा बेग को गुरु हरगोबिंद साहिब को गिरफ्तार करने के लिए अमृतसर भेजा। आपसी संबंधों के कारण वजीर खान ने उन्हें जहांगीर की उनसे मिलने की इच्छा की बाबत जानकारी दी। 

मुगल शासक के दरबार में उनसे पूछा गया कि हिन्दू और मुस्लिम धर्म में कौन सा श्रेष्ठ है। गुरु हरगोबिंद सिहं जी ने कबीर की पंक्तियां सुनाईं, जिससे वह और भी प्रभावित हो गया। उसकी दोस्ती हो गयी। जहांगीर के खजांची चंदू शाह के षड़यंत्र के चलते गुरु हरगोबिंद सिंह समेत 52 राजाओं को ग्वालियर में कैद में रखा गया। 

रिहाई की शर्त रखते हुए मुगल शासक ने कहा उनके पीछे का छोर पकड़ने वाला राजा ही रिहा किया जाएगा। इस पर गुरु की तरकीब के मुताबिक 52 छोर वाला वस्त्र बनाया गया और उन सहित सभी राजा रिहा हो गए।  

ग्वालियर कारागार से निकलने के बाद जिस दिन गुरु हरगोबिंद अमृतसर पहुंचे तो लोगों ने पूरे शहर को हजारों दीयों से रोशन किया गया। जिस दिन गुरु अमृतसर पहुंचे, उस दिन भी अमावस्या थी। उस दिन स्वर्ण मंदिर में भी धूमधाम से रोशनी की गई थी। बस तभी से गुरु की वापसी के दिन सिख धर्म के लोग बंदी छोड़ दिवस मनाते हैं।

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