प्रयागराज : नए मुंसिफ न्यायालय की स्थापना के लिए 500 मामले लंबित होना आवश्यक
अमृत विचार, लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तहसील लोनी में मुंसिफ न्यायालय की स्थापना की मांग को मानने से इनकार करते हुए कहा कि हाई कोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार तहसील लोनी में अपेक्षित संख्या में सिविल मामले गाजियाबाद न्यायालय में विचाराधीन नहीं है। विभिन्न परिपत्रों और हाई कोर्ट द्वारा विकसित मानदंडों के अनुसार एक नए सिविल जज (जूनियर डिवीजन) न्यायालय के निर्माण से पहले न्यूनतम 500 मामलों के लंबित होने का प्रावधान है।
तहसील लोनी में न्यायिक मजिस्ट्रेट/अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत की स्थापना के संबंध में मुद्दा हाई कोर्ट के समक्ष पहले से ही विचारणीय है। अतः याचिका में मांगी गई राहत विचार करने योग्य नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने बार एसोसिएशन, तहसील लोनी की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया। याचिका में हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह प्रमुख सचिव, कानून और न्याय मंत्रालय यूपी, लखनऊ द्वारा भेजे गए पत्रों के अनुसरण में लोनी गाजियाबाद में मुंसिफ न्यायालय की स्थापना सुनिश्चित करें। याचिका में बताया गया कि लोनी को तहसील सदर, गाजियाबाद को विभाजित करके बनाया गया था और इसके अधिकार क्षेत्र में चार पुलिस स्टेशन आते हैं, जहां हर साल लगभग 4000 आपराधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
नगर पालिका परिषद, लोनी में 55 वार्ड हैं, जिनकी आबादी लगभग 35 लाख है। इसमें 49 गांव भी हैं और यह एक विधानसभा सीट है। वर्तमान में वादियों को तहसील लोनी से जिला न्यायालय गाजियाबाद तक लगभग 35 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। इस कारण जनता और अधिवक्ताओं को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। तहसील लोनी में मुंसिफ न्यायालय की स्थापना के लिए उत्तर प्रदेश राज्य के सचिव, विधि और न्याय मंत्रालय, लखनऊ के माध्यम से हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को कई अभ्यावेदन भेजे गए, लेकिन अपेक्षित कार्यवाही नहीं हुई, इसलिए वर्तमान याचिका दाखिल की गई।
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