बाराबंकी: 63 देशों की पदयात्रा के बाद अब जी रहे गुमनामी जीवन, नहीं मिला अर्जुन अवार्ड
फतेहपुर/बाराबंकी, अमृत विचार। विश्व के 63 देशों की पैदल यात्रा करने वाले विकास सिंह आज गुमनामी जिंदगी जी रहे हैं, विदेश यात्रा करने के दौरान उन्हें पाकिस्तान जेल में भी कुछ दिन बिताने पडे़ थे। अर्जुन अवार्ड के लिए उन्होंने आवेदन किया था लेकिन फाइल दब गई। विकास सिंह का जन्म 27 मार्च 1965 को सीतापुर जिले में हुआ। मूलरूप से उनका परिवार लखीमपुर खीरी से सम्बन्धित है।
बाराबंकी के फतेहपुर नगर में स्थित छोटे भाई डाॅ. रमेश चन्द्रा व उनकी पत्नी डाॅ.अन्जू चन्द्रा के साथ रह रहे विकास सिंह ने बताया कि इनकी प्रारम्भिक शिक्षा चारबाग लखनऊ के बाल विद्या मन्दिर से हुई तथा उन्होंने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा के साथ खेल कूद में भी उनकी विशेष रूचि थी।
सामजिक सद्भावना को वैश्विक स्तर पर उद्भासित करने के उद्देश्य से उन्होंने 30 अक्टूबर 1987 से इंडिया गेट से सर्वप्रथम नेपाल व भूटान के लिए पदयात्रा की शुरुआत की। कोलकाता की मार्गरेट अल्वा की सहायता से सही दस्तावेजों को सहेजकर तथा दिल्ली सरकार के युवा कल्याण मंत्रालय, ओलंपिक एसोसिएशन व लायंस क्लब के सहयोग से उन्हें बांग्लादेश यात्रा की अनुमति प्राप्त हुई।
वर्ष 2001 तक विकास सिंह लगभग 63 देशों के लिए सद्भावना राजदूत का कार्य कर चुके हैं तथा तकरीबन 80,000 किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं। वह बताते हैं कि पाकिस्तान यात्रा के दौरान उनको कुछ दिन जेल में भी रहना पडा़। बाद में भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद वह रिहा होकर राजस्थान के बाघा बार्डर के रास्ते पुन: भारत लौटे। उन्होंने बताया कि 2001 के बाद से वह एक गुमनामी जीवन जी रहे हैं।
उन्हें सरकारों द्वारा जो उचित सहयोग मिलना चाहिए वह नही मिल सका। विकास सिंह ने अर्जुन अवार्ड के लिए तीन वर्ष पहले आवेदन किया था लेकिन अभी तक उनके द्वारा किए गए आवेदन पर कोई कार्यवाही अमल में नहीं लायी जा सकी जिससे वह काफी निराश भी है। विकास सिंह ने थाईलैंड, मलेशिया, चीन, रूस, वियतनाम, हांगकांग, मंगोलिया, फ़िनलैंड, पोलैंड, जर्मनी, बेल्जियम, स्पेन, इटली, ईरान, इराक, अफगानिस्तान आदि देशों की यात्राएं की हैं।
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