Editorial : एससीओ में भारत
अमृत विचार : पाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन का समय ऐसा है जब दुनिया कठिनाई के दौर से गुजर रही है। दो बड़े संघर्ष जारी हैं, जिनका असर पूरे विश्व पर पड़ रहा है। ऐसे में आतंकवाद क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा है। क्षेत्र में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत अभिसरण का एक मजबूत समर्थक है और उसने एससीओ में राज्य प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दों को हमेशा उठाया है।
भारत पहले ही एससीओ में चीन-पाकिस्तान धुरी के खिलाफ अपनी नाराजगी प्रकट कर चुका है। बुधवार को सम्मेलन में भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आतंकवाद से लड़ने और संयुक्त राष्ट्र जैसे विश्व निकायों को अधिक समावेशी, प्रतिनिधि और लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। भारत ने एससीओ के मंच का इस्तेमाल चीन के अपने पड़ोसियों के प्रति आक्रामक दृष्टिकोण अपनाने के मुद्दे को उठाने के लिए किया। भारत एससीओ का एकमात्र देश है, जिसने चीन की विवादास्पद ‘वन बेल्ट वन रोड’ संपर्क परियोजना का समर्थन नहीं किया है। एससीओ राजनीति, व्यापार और अर्थव्यवस्था, अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी एवं संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। पिछले दो दशकों में एससीओ पूरे एशियाई क्षेत्र में शांति, समृद्धि और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है।
एससीओ का उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद की ‘तीन बुराइयों’ से लड़ना रहा है। शुरुआती दिनों में और क्षेत्र की स्थिति के कारण, एससीओ ने सदस्य देशों के सामने आने वाली तत्काल चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें आतंकवाद, अलगाववाद, उग्रवाद और नशीले पदार्थों की तस्करी का खतरा शामिल था।
विदेश मंत्री ने साफ कर दिया कि यदि सीमा पार गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और विभाजनवाद से प्रभावित हैं, तो वे संभवतः व्यापार, ऊर्जा प्रवाह, कनेक्टिविटी और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन नहीं देंगे। वास्तव में सहयोग आपसी सम्मान और संप्रभुता की समानता पर आधारित होना चाहिए।
इसमें क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को मान्यता दी जानी चाहिए। विकास और वृद्धि को शांति व स्थिरता की आवश्यकता होती है। अगर वैश्विक व्यवस्थाओं, खासकर व्यापार और पारगमन के क्षेत्रों में अपने फायदे के हिसाब से चयन करेंगे तो सहयोग आगे नहीं बढ़ सकता। एससीओ के मंच से क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। चुनौतियों से निपटने के लिए सदस्य देशों के बीच सहयोग के महत्व पर जोर दिया। अंततः यह कहा जा सकता है कि सम्मेलन में भारत ने विचार-विमर्श में सकारात्मक और रचनात्मक योगदान दिया।
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