कासगंज: सीताराम मंदिर के टीले में समाई हैं विभिन्न काल की संस्कृतियां, प्राचीन धरोहरों का किया सर्वे

तीर्थनगरी सोरों के सीताराम और बटुकनाथ मंदिर का बताया ऐतिहासिक महत्व 

कासगंज: सीताराम मंदिर के टीले में समाई हैं विभिन्न काल की संस्कृतियां, प्राचीन धरोहरों का किया सर्वे

सोरोंजी, अमृत विचार। गंगा और जमुना के बीच बसा कासगंज एक नहीं अनेक संस्कृतियों को संजोए हुए है। यहां प्राचीन मंदिर हैं। उन्हीं मंदिरों में सीताराम और बटुकनाथ मंदिर भी शामिल है। ऊंचे टीले पर स्थापित सीताराम मंदिर के तमाम महत्व हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सर्वे के लिए शनिवार को पुरातत्ववेत्ता पहुंचे। उन्होंने टीम के साथ सर्वे कर यहां तमाम संभावनाएं तलाशी और स्पष्ट किया कि सीताराम मंदिर जिस टीले पर है उस टीले में विभिन्न काल की संस्कृतियों समाई हुई हैं।

एएमयू के पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर एमके पुंढीर ने अपने सहयोगियों के साथ सीताराम मंदिर व वटुकनाथ मंदिर पर पहुंचकर सर्वेक्षण किया। सर्वे के दौरान पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर ने बताया कि सोरोंजी के सीताराम मंदिर की मौजूदा संरचना एक बहुत बड़े व प्राचीन मंदिर के ढांचे का बचा हुआ एक हिस्सा है। इसका एक बड़ा हिस्सा जो कि मुख्यतः गर्भगृह व अन्तराला था। वह पूर्व में नष्ट हो चुका। मौजूदा मंदिर मंडप में व्यवस्थित है। इसी मंडप में संगीत साधना हुआ करती थी। 

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मौजूदा ढांचे की पुरातात्विक एवं स्थापत्य के अध्ययन से यह विदित होता है कि मंदिर के मौजूदा ढांचे का निर्माण 10 वीं एवं 11 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है। यह मंदिर एक ऊंचे अधिस्थान पर निर्मित है एवं मौजूदा ढांचा एक मंडप में निर्मित है। उसके चारों दिशाओं में निकास द्वार बनाए गए थे एवं मंदिर का आंतरिक एवं बाह्य आवरण बहुत ही उत्कृष्ट नक्काशी से शुशोभित है। जो भी नक्काशी विद्यमान है, वो भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को व्यक्त करती है। यह मंदिर एक ऊंचे टीले पर स्थित है एवं यह टीला प्राचीन काल की विभिन्न संस्कृतियों को समाए हुए है। इस मंदिर की संरचना से यह भी विदित होता है कि यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतारों को समर्पित है।

तुलसीदास और नंददास की संगीत शिक्षा स्थली है यह मंदिर
पुरातत्ववेत्ता ने सर्वे के दौरान कई अभिलेख देखे। इसके अलावा वहां मौजूद कुछ दीवार लेखन का भी परीक्षण किया। वहां पाया गया कि सीताराम मंदिर संगीत शास्त्र के आचार्य हरिदास का समाधि स्थल है और महाकवि संत तुलसीदास एवं नंददास की संगीत शिक्षा स्थली है।

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तलाशी जा रही तमाम संभावनाएं 
सोरों जी के ऐतिहासिक मंदिरों का महत्व किसी से छुपा नहीं है। यहां जीर्णोद्धार के साथ ही पुरातत्व वस्तुओं को सहेजने और सवारने का प्रयास किया जा रहा है। कासगंज में इंजीनियर अमित तिवारी पुरातत्व एवं ऐतिहासिक वस्तुओं को सहेजने में बेहद जागरूक हैं। पूरी टीम मिलकर कार्य कर रही है-एमके पुंढीर, पुरातत्वववेत्ता

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