प्रयागराज : लिव-इन पार्टनर के प्रति क्रूरता और दहेज हत्या के आरोपों को खारिज करने से किया इनकार
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ अपने लिव-इन पार्टनर के प्रति क्रूरता और दहेज हत्या के आरोपों को खारिज करने से इनकार करते हुए कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के दायरे में नहीं आती, तो भी रिकॉर्ड में यह दिखाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं कि आरोपी और पीड़िता घटना के समय "पति-पत्नी" के रूप में एक साथ रह रहे थे।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अगर आरोपी और पीड़िता पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे तो आईपीसी की धारा 498-ए और 304-बी के तहत पति पर आरोप लगाए जा सकते हैं। कोर्ट ने देखा कि प्राथमिकी में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पीड़िता और आरोपी का विवाह कोर्ट के सामने हुआ था, इसलिए आरोपी के खिलाफ आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि मृतका याची की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी थी या नहीं, इसे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाहियों के दौरान नहीं तय किया जा सकता है।
दोनों के विवाह की वैधता के प्रश्न को केवल मुकदमे के दौरान ही हल किया जा सकता है। आरोपी के खिलाफ आईपीसी और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत पुलिस स्टेशन कोतवाली, प्रयागराज में मामला दर्ज किया गया था। अतः कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह की एकलपीठ ने आपराधिक मामले से खुद को मुक्त करने की मांग लेकर ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली आदर्श यादव की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया।
याचिका में तर्क दिया गया था कि पीड़िता के साथ उसका विवाह नहीं हुआ था। वह केवल महिला के साथ लिव-इन- रिलेशनशिप में रह रहा था। हालांकि कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के आरोपों से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि महिला ने आरोपी के साथ रहते हुए ही दहेज उत्पीड़न के कारण आत्महत्या की