प्रयागराज : बार-बार निर्देशों के बावजूद हलफनामा दाखिल करने में राज्य प्राधिकारी लापरवाह

प्रयागराज : बार-बार निर्देशों के बावजूद हलफनामा दाखिल करने में राज्य प्राधिकारी लापरवाह

प्रयागराज, अमृत विचार । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य प्राधिकारियों और उनके अधिवक्ताओं द्वारा हलफनामा दाखिल करते समय बरती जाने वाली लापरवाही पर गंभीर रुख अपनाते हुए कहा कि ऐसी कमियों को दूर करने के लिए बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद राज्य प्राधिकारियों तथा राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं का रवैया बहुत ही लापरवाह है।

न्यायालय ने हलफनामे दाखिल करने में हुई गलतियों या कमियों को सुधारने के लिए विभिन्न अवसरों पर छूट दी है, लेकिन सभी प्रयास बेकार ही सिद्ध हुए। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की एकलपीठ ने भदोही के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक मामले में दाखिल व्यक्तिगत हलफनामे में हुई त्रुटियों को रेखांकित करते हुए की। कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता के अनुरोध पर निश्चित भूमि के लिए स्टांप शुल्क मूल्यांकन को चुनौती देने वाले उपरोक्त मामले में पहले भी कई बार स्थगन आदेश दिया था। फरवरी 2024 से लेकर गत 30 अगस्त तक कोई जवाबी हलफनामा दाखिल न होने पर कोर्ट ने सख्त कार्यवाही की चेतावनी दी, जिसके बाद जिला मजिस्ट्रेट ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि उनका इरादा अदालत के पिछले निर्देशों का उल्लंघन करने का नहीं था।

दरअसल अदालत के आदेशों के बारे में उन्हें कभी बताया ही नहीं गया, इसलिए तय समय-सीमा के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया जा सका। उक्त हलफनामे की कई गलतियों में से पैराग्राफ 4 की गलती को देखकर कोर्ट को आश्चर्य हुआ, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट के स्थान पर उच्च न्यायालय लिखा हुआ था। कोर्ट ने कहा कि पैराग्राफ को पढ़ने से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि जिला मजिस्ट्रेट क्या कहना चाह रहे थे। हलफनामे की एक अन्य गलती में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दाखिल हलफनामे को "पुलिस आयुक्त" द्वारा दाखिल किया गया दर्शाया गया है।

अंत में कोर्ट ने कहा कि हलफनामे को पढ़कर ऐसा लगता है कि इसे बहुत ही लापरवाही और सुस्त तरीके से दायर किया गया है। यहां तक कि हस्ताक्षर करने से पहले इसे ठीक से पढ़ा भी नहीं गया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (विधि) को ऐसे मुद्दों का संज्ञान लेने का निर्देश दिया है