सोरों तीर्थनगरी में देशभर से पहुंच रहे श्रद्धालु, जानें श्राद्ध से जुड़ी खास बातें

सोरों तीर्थनगरी में देशभर से पहुंच रहे श्रद्धालु, जानें श्राद्ध से जुड़ी खास बातें

सोरोंजी, अमृत विचार: भगवान वराह की जन्म स्थली सोरों शूकर क्षेत्र पितृ पक्ष के अवसर पर श्रद्धालुओं से भरी हुई है। यहां हरिपदी गंगा कुंड के तट पर श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्वजों की अस्थियां विसर्जन करने से मुक्ति मिलती है। परिवार में शांति बनी रहती है। यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपने-अपने  पितरों को तर्पण करने के लिए हरिपदी गंगा कुंड में पहुंच रहे हैं। 

सोरों तीर्थनगरी में इन दिनों देश भर से श्रद्धालु आ रहे हैं। जिससे इस पावन स्थल पर आस्था और भक्ति का माहौल बना हुआ है। पितृ पक्ष के इस मौके पर श्रद्धालुओं भक्ति और श्रद्धा के कारण हरिपदी गंगाकुंड का दृश्य अति भावुक और दिव्य हो गया है। पितृ पक्ष में श्रद्धालु अपने पूर्वजों को जलदान और पिंडदान के अलावा अस्थियां विसर्जन करने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से श्रद्धालु आ रहे हैं। वह हरिपदी गंगा कुंड के महंत कालीचरन ने बताया कि हरिपदी  गंगा कुंड उत्तर प्रदेश का पहला कुंड मोक्ष देने वाला है। पितृ पक्ष के दौरान यहां तर्पण करने से पितरों को विशेष शांति और मुक्ति प्राप्त होती है। 

श्राद्ध करने से होती है यश, वैभव और वंश की वृद्धि 
पितरों के नियमित जो भी श्रद्धा से दिया जाता है। उसे श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध के मुख्यतः तीन अंग होते है पिण्ड दान, तर्पण और भोजन पितरों के निमित्त श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर के यश वैभव और वंशवृद्धि करते हैं। पित्रपक्ष में पितृ दक्षिण दिशा से वायुरूप अपने घर पहुंचते हैं और अपने निमित्त श्राद्ध को ग्रहण करके विविध आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आज सोरों शूकर क्षेत्र में पितृपक्ष के आठवें दिन सप्तमी तिथि का श्राद्ध एवं तर्पण लड्डू वाले बालाजी घाट पर आचार्य शशिधर द्विवेदी के निर्देशन में सम्पन्न किया गया। 

सोरों शूकर क्षेत्र में भगवान विष्णू ने तृतीय अवतार भगवान वराह के रूप में लिया था। यहां भगवान वराह ने हिरणाक्ष का वध करके हरपदीय गंगा कुंड में अपने नाखूनों से खोदकर पानी निकाला और उसी में अपने शरीर का त्याग कर दिया था, तभी से यहां की मान्यता चली आ रही है। जहां कुंड में पितरो का जलदान, पिंडदान और भोजन दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं, तो वहीं इस कुंड में मृतकों की अस्थियां विसर्जन की जाती है, जो मात्र 72 घंटे के अंदर पानी में घुल मिल जाती है, ऐसी मान्यता है।

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