मुरादाबाद : प्रतिपदा का श्राद्ध कल से, पितरों की कृपा से मिलती है जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति

पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की भी परंपरा है, पितरों की कृपा से मिलती है जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति

मुरादाबाद : प्रतिपदा का श्राद्ध कल से, पितरों की कृपा से मिलती है जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति

मुरादाबाद, अमृत विचार। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना गया है। पितृ पक्ष में पितरों को याद किया जाता है। मान्यता है कि पितृ के प्रसन्न होने पर जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

पितृ पक्ष में प्रियजनों का श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा है। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की भी परंपरा है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा से है। पितृ पक्ष जब आरंभ होते हैं तो पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है। पितृ पक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष 17 सितंबर को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। पितृ पक्ष का समापन 2 अक्टूबर को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होगा। इस दिन को आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है।

ज्योतिषाचार्य पं केदार मुरारी ने बताया कि पितृ पक्ष में हिंदू अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-अर्चना तर्पण करते हैं । ऐसा करने से घर में सुख-स्मृद्धि व सम्मान आता है। यह विशेष समयावधि गणेश चतुर्थी के बाद पड़ने वाली पहली पूर्णिमा से शुरू होती है और पहली अमावस्या पर समाप्त हो जाती है। उन्होंने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब महाभारत युद्ध के दौरान योद्धा और दानवीर राजा कर्ण की मृत्यु हो गई और उनकी आत्मा स्वर्ग में आई। तब उन्हें वहां भोजन के बजाय गहने और सोने का भोजन दिया गया। तब उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से पूछा कि उन्हें असली भोजन क्यों नहीं मिल रहा है। 

भगवान इंद्र ने तब उन्हें बताया कि तुमने इन वस्तुओं को अपने पूरे जीवन दान के रूप में दिया था लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन दान नहीं किया। यह सुनकर कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों से अवगत नहीं थे। इस तर्क को सुनकर, इंद्र पंद्रह दिन की अवधि के लिए कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के लिए सहमत हुए। जिससे वह अपने पूर्वजों की स्मृति में भोजन बना सकें और दान कर सकें। समय की इस अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है और तभी से पितृपक्ष की महत्ता को माना जाता है।

यह हैं श्राद्ध के अनुष्ठान
पहला अनुष्ठान – इसमें पिंडदान किया जाता है अर्थात् पूर्वजों को पिंड का प्रसाद दिया जाता है। पिंड चावल से बनाया जाता है उसका रूप गेंद की तरह होता है।
दूसरा अनुष्ठान – इसमें तर्पण होता है जिसमे यह कुशा घास, जौ, आटा और काले तिल आदि को मिलाकर बनाया जाता है।
अंतिम अनुष्ठान - इसमें ब्राह्मण या पुजारियों को भोजन खिलाया जाता है और इसके साथ ही इस समय के दौरान, पवित्र शास्त्र से पढ़ना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। कुछ लोग इस दिन जानवरों जैसे कि गाय, कौआ व कुत्तों को भोजन खिलाना बहुत ही शुभ मानते हैं। भोजन ब्राह्मण की रूचि का हो दान ऐसा हो जो ब्राह्मण के काम आ सके।

17 सितंबर 2024, मंगलवार - प्रोषठपदी/पूर्णिमा श्राद्ध
18 सितंबर 2024, बुधवार - प्रतिपदा का श्राद्ध

19 सितंबर 2024, गुरुवार - द्वितीया का श्राद्ध
20 सितंबर 2024,शुक्रवार - तृतीया का श्राद्ध

21 सितंबर 2024, शनिवार - चतुर्थी का श्राद्ध जो अविवाहित बालक की मृत्यु चाहे किसी दिन भी हुई हो श्राद्ध इसी दिन करना चाहिए
22 सितंबर 2024, रविवार - पंचमी का श्राद्ध

23 सितंबर 2024, सोमवार - षष्ठी का श्राद्ध और सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर 2024, मंगलवार - अष्टमी का श्राद्ध

25 सितंबर 2024, बुधवार - नवमी का श्राद्ध किसी भी दिन अगर सुहागन स्त्री की मृत्यु हुई हो श्राद्ध नवमी के दिन ही करना चाहिए
26 सितंबर 2024, गुरुवार - दशमी का श्राद्ध

27 सितंबर 2024, शुक्रवार - एकादशी का श्राद्ध, संन्यासियों का श्राद्ध इसी दिन किया जाता है
29 सितंबर 2024, रविवार - द्वादशी का श्राद्ध

29 सितंबर 2024, रविवार - मघा का श्राद्ध
30 सितंबर 2024, सोमवार - त्रयोदशी का श्राद्ध

01 अक्टूबर 2024, मंगलवार - चतुर्दशी का श्राद्ध अगर किसी ने आत्महत्या की हो उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है
02 अक्टूबर 2024, बुधवार - सर्व पितृ अमावस्या जो अमावस्या के दिन मरे हों या जिनकी तिथि पता ना हो उनका श्राद्ध इसी तिथि को किया जाता है

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