Exclusive: जमीन है नहीं और छूने चाहते आसमान; स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी में नहीं मिल पाया स्थान, कानपुर SCR से पहले ही बाहर

Exclusive: जमीन है नहीं और छूने चाहते आसमान; स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी में नहीं मिल पाया स्थान, कानपुर SCR से पहले ही बाहर

कानपुर, मनोज त्रिपाठी। पहले स्टेट कैपिटल रीजन से बाहर होना और अब स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी के लिए चयनित नहीं होने से कानपुर की उम्मीदों को दो माह के भीतर न सिर्फ दोहरा झटका लगा है, बल्कि नोएडा, गाजियाबाद और लखनऊ के बाद निवेश और विकास की दौड़ में आगरा और प्रयागराज जैसे शहरों तक से पिछड़ने का खतरा पैदा हो गया है। 

केंद्र सरकार ने आगरा व प्रयागराज को स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी का तोहफा दिया है। अंग्रेजों के जमाने से औद्योगिक शहर की पहचान रखने वाले कानपुर को अमृतसर-कोलकाता डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के किनारे स्थित होने के बावजूद स्मार्ट औद्योगिक शहरों में सिर्फ इसलिए जगह नहीं मिल सकी, क्योंकि यहां इसके लिए पर्याप्त जमीन और आधारभूत ढांचा उपस्थित नहीं था। इस कारण से माना जा रहा है कि भविष्य में भी शहर को किसी बड़ी विकास परियोजना का हिस्सा बनने का मौका नहीं मिलने वाला है। 

औद्योगिक और स्मार्ट सिटी होने के बावजूद कानपुर को औद्योगिक स्मार्ट सिटी परियोजना का लाभ नहीं मिलना निराशाजनक है। हालांकि इसकी नींव उसी समय पड़ गई थी, जब 3 साल पहले भाऊपुर में इन्वेस्टमेंट मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर (इंडस्ट्रियल कारिडोर) की स्थापना का प्रस्ताव रद कर दिया गया था। इस्टर्न डेडीकेटेड (अमृतसर-कोलकाता) फ्रेट कारिडोर के किनारे प्रदेश में जिन स्थानों पर 7 साल पहले इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की स्थापना के लिए भूमि अधिसूचित की गई थी, भाऊपुर उनमें से एक था। यहां 20 हजार एकड़ भूमि अधिसूचित की गई थी। 

लेकिन किसानों से मुआवजे को लेकर सहमति नहीं बन सकी। किसान 5 से 6 गुना मुआवजा मांग रहे थे, तत्कालीन यूपीसीडा ने 7 गुना तक मुआवजा देना प्रस्तावित करके राशि किस्तों में देने की शर्त लगा दी। इसी मुद्दे पर बात अटक गई और योजना ठंडे बस्ते में चली गई। इसी के बाद केंद्र सरकार को आगरा में थीम पार्क और प्रयागराज में नैनी स्थित सरस्वती हाईटेक सिटी के लिए अधिसूचित की गई भूमि का प्रस्ताव भेज दिया गया।

भाऊपुर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए रायपालपुर में 1605 एकड़, गुरगांव की 257 एकड़, रामपुर गजरा में 223 एकड़, आंट गांव की 604 एकड़, संभलपुर बिठूर गांव की 35 एकड़ भूमि ली जानी थी। कुल 2724 एकड़ भूमि का अधिग्रहण व पुर्नग्र्रहण होना था। इसमें 2323 एकड़ भूमि किसानों और 302 एकड़ ग्राम समाज की भूमि थी। अगर यह इंडस्ट्रियल कॉरिडोर परवान चढ़ गया होता तो 4 लाख लोगों को रोजगार मिलता। 

कानपुर के औद्योगिक विकास को पंख लगते और अब केंद्र की स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी परियोजना का लाभ मिलता। औद्योगिक विकास से जुड़े जानकारों का कहना है कि कानपुर में डिफेंस कॉरिडोर सिर्फ इसलिए बन रहा है, क्योंकि यहां 5 आयुध कारखानों के साथ शोध, अनुसंधान, गुणवत्ता, भंडार और हथियारों के परीक्षण से जुड़े संस्थानों की एक जमाने से मौजूदगी है, वर्ना इससे पहले प्रस्तावित मेगा लेदर क्लस्टर पार्क की योजना अभी तक धरातल पर नहीं उतर सकी है। कुछ यही स्थिति लॉजिस्टिक पार्क की है, जो भाऊपुर इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का हिस्सा था। 

अब सरसौल में मल्टी लॉजिस्टिक पार्क बनाने की कवायद चल रही है। इसकी स्थापना से उद्यमियों को वहां माल रखने और सीधे बंदरगाहों तक भेजने की सुविधा के साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलना है। उद्यमियों के मुताबिक वर्तमान परिस्थितियों में निजी क्षेत्र के सहयोग के बिना सरकार की ऐसी योजनाएं तेजी से आगे नहीं बढ़ सकती हैं और निजी क्षेत्र का हाथ तभी आगे बढ़ेगा, जब उसे परियोजना में सुविधा और आर्कषण नजर आए।

भाऊपुर के किसानों से बात करके भूमि का अधिग्रहण सुलह समझौते के आधार पर किया जाना चाहिए। यदि कोई दिक्कत है तो मंधना में जो भूमि अधिग्रहीत की गई थी उस पर कब्जा लिया जाना चाहिए था। यह कानपुर के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्मार्ट औद्योगिक क्षेत्र की योजना से कानपुर बाहर हो गया।– अतुल सेठ, वरिष्ठ प्रांतीय उपाध्यक्ष पीआईए

अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में इच्छाशक्ति का घोर अभाव है। 10 साल से अधिक समय हो गया लेकिन मंधना के किसानों से ली गई भूमि पर यूपीसीडा कब्जा नहीं ले पाया। जब ट्रांसगंगा सिटी की स्थापना के लिए किसानों को बढ़ा मुआवजा दिया जा सकता है तो मंधना के किसानों को क्यों नहीं।– उमंग अग्रवाल, महामंत्री फीटा

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