प्रयागराज : वेतन के आधार पर कर्तव्य और योग्यताओं में समान पदों को गैर-समतुल्य नहीं माना जा सकता

प्रयागराज : वेतन के आधार पर कर्तव्य और योग्यताओं में समान पदों को गैर-समतुल्य नहीं माना जा सकता

अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रिंसिपल के पद के लिए पात्रता के उद्देश्य से अतिरिक्त प्रोफेसर के अनुभव को प्रोफेसर के बराबर मानने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा अतिरिक्त प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद की योग्यता, शिक्षक अनुभव और जिम्मेदारियों को समान माना गया है।

कोर्ट ने ग्रेड पे के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि ऐसे अंतर पद को गैर- समतुल्य नहीं बनाते हैं, विशेषकर जब पदों के लिए आवश्यक कर्तव्यों, जिम्मेदारियों और न्यूनतम योग्यताओं की प्रकृति समान हो। उक्त आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने डॉ. जितेंद्र सिंह कुशवाहा की विशेष अपील को खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 22 दिसंबर 2020 को जारी विज्ञापन के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रिंसिपल (एलोपैथी) के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किया गया था, जिसमें उम्मीदवारों के पास कम से कम 10 साल का शिक्षक अनुभव होना आवश्यक था।

उक्त अनुभव में प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम 5 साल का अनुभव भी शामिल था। उपरोक्त पद के लिए डॉ. शिव कुमार को अनंतिम रूप से चुना गया। हालांकि उनके चयन को डॉ. कुशवाहा ने इस आधार पर चुनौती दिए कि उनके पास प्रोफेसर के रूप में अपेक्षित 5 साल का अनुभव नहीं है। कोर्ट के सामने यह प्रश्न था कि भारतीय नियमों के अनुसार अतिरिक्त प्रोफेसर के रूप में डॉ. कुमार के अनुभव को प्रोफेसर के समकक्ष माना जा सकता है, जिस पर कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वेतन ग्रेड के आधार पर कर्तव्य और योग्यताओं में समान पदों को गैर-समतुल्य नहीं माना जा सकता है।

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