बरेली: पिता ने अंग्रेजों के खिलाफ किया संघर्ष...बेटा अपनी ही सरकार से कर रहा जद्दोजहद

सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में हेड कॉन्सटेबल थे मोहम्मद यूसुफ

बरेली: पिता ने अंग्रेजों के खिलाफ किया संघर्ष...बेटा अपनी ही सरकार से कर रहा जद्दोजहद

बरेली, अमृत विचार: हिंदुस्तान अपना 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, मगर आजादी के लिए जद्दोजहद करने वाले यहां तक कि अपनी जान की बाजी लगाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को देश और प्रदेश की सरकारें भूल चुकी हैं। आलम ये है कि एक अदद पेंशन और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित सुविधाएं पाने के लिए इनके परिजनों को तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसा ही एक परिवार है, नेता जी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के मोहम्मद यूसुफ का। जिन्हें अधिकारियों की चौखट से आज तक सिर्फ निराशा हाथ लगी।

घेर शेख मिट्ठू मलूकपुर के रहने वाले 70 साल के सैयद मोहसिन अली उर्फ जहीर अख्तर अपने पिता की नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ तस्वीर और उनको मिला मेडल दिखाते हुए बताते हैं कि उनके पिता मोहम्मद यूसुफ भारतीय राष्ट्रीय सेना आजाद हिंद फौज में हेड कॉन्सटेबल के पद पर तैनात थे। उनके वालिद ने आजाद हिंद फौज में रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ नेता जी की कयादत में तमाम लड़ाईयां लड़ीं। कई मिशन में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भाग लिया। यही वजह रही कि 26 जनवरी 1950 को देश के पहले गणतंत्र दिवस पर उनके पिता को चांदी का मेडल दिया गया, जो आज तक उनके पास संग्रहित है। उनके पिता मोहम्मद यूसुफ सीतापुर पुलिस लाइन से रिटायर हुए थे। 

जब तक रहीं मां तब तक ही मिली पेंशन
1977 में मोहम्मद यूसुफ का निधन होने के बाद उनकी पत्नी यानी सैयद मोहसिन अली की मां कनीज फातिमा सरकारी पेंशन मिलती रही। मां का निधन होने पर सैयद मोहसिन ने 1997 को आखिरी बार मां की बची हुई पेंशन की धनराशि प्राप्त की। लेकिन इसके बाद आज तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित होने के नाते उन्हें कोई सुविधा नहीं मिली। उन्होंने अब जिलाधिकारी बरेली को पत्र लिखकर अपने बेटे सैयद जीशान अली के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित का प्रमाण पत्र बनवाने की मांग की है।

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