लखनऊ: अनुदेशकों का संघर्ष लाया रंग, प्रमुख सचिव से वार्ता के बाद लिखित आदेश हुआ जारी

लखनऊ: अनुदेशकों का संघर्ष लाया रंग, प्रमुख सचिव से वार्ता के बाद लिखित आदेश हुआ जारी

लखनऊ, अमृत विचार। बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत अनुदेशकों का प्रदर्शन चौथे दिन भी जारी रहा। हालांकि अनुदेशकों के सभी 11 मांगों पर विचार होगा। बताया जा रहा है अब अनुदेशकों को समान कार्य के लिए समान वेतन जल्द ही मिल सकता है। अन्य मांगों पर भी सरकार विचार करेगी। लिखित आदेश मिलते ही धरने पर बैठे सभी अनुदेशक वापस लौटने लगे हैं। इस बात की जानकारी परिषदीय अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन के अध्यक्ष विक्रम सिंह ने दी है।

बेसिक शिक्षा निदेशालय पर शुक्रवार सुबह भारी तादात में अनुदेशक बारिश के बीच धरने पर बैठे रहे। उन्हें प्रमुख सचिव की तरफ जारी लिखित आदेश का इंतजार था। उत्तर प्रदेश परिषदीय अनुदेशक कल्याण एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवीन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि हम सभी का संघर्ष सफल रहा है। जब तक हमें नियमित नहीं किया जाता है, तब तक सहायक अध्यापकों की तरह अनुदेशकों को अवकाश और अन्य सुविधायें मिलेंगी। उन्होंने बताया कि गुरुवार को ही हमे लिखित आदेश मिलना था,लेकिन किन्ही कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए हम सभी शांतिपूर्ण तरीके से यहां धरने पर बैठे रहे, लेकिन आज कार्यवृत्ति लागू हुआ है। इससे यह तय हो गया है कि अब हमारी सभी मांगों पर सरकार विचार करेगी।

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प्रदर्शन कर रहे अनुदेशकों की मानें तो उन्हें मानदेय के रूप में बहुत ही कम रुपये मिलते हैं। इतने कम पैसों में वह परिवार तो छोड़ो बच्चों के लिए भी कुछ नहीं कर पाते हैं। हमारा धरना हमारे बच्चों के भविष्य के लिए है। यदि हमारी मांग पूरी होती है, तभी हमें कुछ राहत मिलेगी। संगठन के अध्यक्ष विक्रम सिंह के मुताबिक कार्यवृति (MOM)की कॉपी मिल गई है। 

 मांग

1. यह कि शिक्षा अधिकार अधिनियम से नियुक्त अनुदेशक पिछले दस वर्षों से पूर्ण कालिक कार्य करते हुए नौनिहालों का भविष्य संवार रहे हैं। अधिसंख्य अनुदेशकों की उम्र सीमा 40 वर्ष पार कर चुकी है। अतः नवीन शिक्षा नीति के अनुसार हम अनुदेशकों को नियमित किया जाए।

2. यह कि नियमितीकरण होने तक तत्काल प्रभाव से 12 माह के लिए समान कार्य, समान वेतन की व्यवस्था लागू की जाए।

3. यह कि नवीनीकरण के नाम पर हम अनुदेशकों का अमानवीय शोषण किया जाता है। शोषण के कुकृत्य ऐसे हैं जिसे सिर्फ संवेदनशील सरकार ही समझ सकती है। अतः स्वतःनवीनीकरण व्यवस्था लागू हो।

4. यह कि सरकार द्वारा हम अनुदेशकों के विरुद्ध अदालतों में चलाई जा रही समस्त कार्यवाही अविलंब वापस लेकर सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय डबल बेंच में पारित निर्णय एवं दिशानिर्देशों को तत्काल प्रभाव से निष्पादित किया जाए।

5. महिला अनुदेशकों का अन्तर्जनपदीय स्थानांतरण (जिस जनपद में शादी हुई हो) प्राथमिकता के आधार पर किया जाए।

6. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय से रुग्ण हो चुके हम अनुदेशकों को आयुष्मान योजना का

लाभ दिया जाए। 

7. यह कि हम अनुदेशकों के भविष्य एवं आकस्मिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा (EPF) की गारंटी दिया जाए।

8. यह कि 100 छात्र संख्या की तलवार का प्रयोग शिक्षकों द्वारा अनुदेशकों के सम्बन्ध में जानबूझकर किया जा रहा। ऐसे में शोषण से बचाव के राहत कारी उपाय किये जाएं। मात्र अनुदेशकों को जिम्मेदार मानकर एकतरफा कार्यवाही नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। स्थानांतरण में उन समस्त विद्यालयों को शामिल किया जाए जहाँ संख्या 100 से ज्यादा हो।

9. यह कि हम अनुदेशकों को 10 संयोगी अवकाश (CL) के अलावा कोई छुट्टी नहीं है। जो कि मानवाधिकारों के विरुद्ध है अतः अनुदेशकों को भी शिक्षकों की तरह ही आकस्मिक अवकाश, चिकित्सकीय अवकाश, बाल्य देखभाल अवकाश (CCL) एवं मातृत्व अवकाश का उपबंध किया जाए।

10. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय एवं सरकार द्वारा अनुदेशकों को लगातार कोर्ट में उलझाए, लटकाने के परिणामस्वरूप स्वयं के व्यवस्था से आनलाइन गतिविधियों का संचालन तकनीकी रूप से असम्भव हो चला है। हम अनुदेशक कर्मठता और ईमानदारी से समस्त गतिविधियां आफलाइन मोड में ही निष्पादित करेंगे।

11. यह कि अत्यंत अल्प मानदेय एवं संकीर्ण सामाजिक स्थिति के कारण हम अनुदेशक मानवीय गरिमा के अनुकूल सामान्य जीवनचर्या से तालमेल नहीं बना पा रहे। परिणामस्वरूप कार्यस्थलों पर शोषण एवं असहजता से अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है।

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